चीन ने बीते कुछ महीनों में अंतिम ‘परिणाम दस्तावेज़’ या ‘संयुक्त वक्तव्य’ की भाषा में कई भारतीय प्रस्तावों का विरोध करना शुरू कर दिया है, जबकि इसके लिए आम सहमति की आवश्यकता होती है. आम सहमति दस्तावेज़ लाना भारत के लिए सबसे बड़ी कूटनीतिक चुनौती बन गई है. चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने जी20 नेताओं के शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए प्रधानमंत्री मोदी के निमंत्रण को अस्वीकार कर दिया जिससे साफ हो गया कि दोनों देशों के संबंधों में आई दरार काफी चौड़ी हो गई है. जी 20 जैसे मंच में इस तरह की हरकत करके चीन कूटनीतिक तनाव बढ़ाने का संकेत दे रहा है.
चीन का विरोध यूक्रेन संकट और जलवायु परिवर्तन जैसे हाई-प्रोफाइल मुद्दों के साथ साथ मिशन LiFE (पर्यावरण के लिए जीवन शैली), महिला नेतृत्व वाले विकास और एमएसएमई जैसे मामलों तक पहुंच गया है. मतभेदों को दूर करने के भारत के प्रयासों के बावजूद, चीन G20 के भीतर आम सहमति तक पहुंचने में एक महत्वपूर्ण चुनौती पेश कर रहा है.
यहां भी लगाया था अड़ंगा
इससे पहले रिपोर्ट्स में कहा गया कि चीन ने ग्रुप्स ऑफ 20 की बैठक में जलवायु परिवर्तन से निपटने पर हुई चर्चा में अड़ंगा लगाया था. हालांकि चीन के विदेश मंत्रालय ने कहा था कि यह “तथ्यों के साथ पूरी तरह से असंगत” है. उत्सर्जन में कटौती और जीवाश्म ईंधन के उपयोग के साथ-साथ गरीब देशों की मदद करने के लिए जलवायु वित्त जैसे मुद्दों पर तीन दिनों की चर्चा के बाद, प्रमुख देशों का समूह एक संयुक्त बयान जारी करने में विफल रहा था.
अमेरिका का बयान
विदेश मंत्रालय को बयान जारी कर कहना पड़ा कि उसे बैठकों में किसी समझौते पर नहीं पहुंचने का “अफसोस” है, ऐसा अन्य देशों द्वारा ‘बिना किसी कारण के’ उठाए गए ‘भू-राजनीतिक मुद्दों’ के कारण हुआ. इंडिया टुडे से बात करते हुए भारत में अमेरिकी राजदूत एरिक गार्सेटी ने कहा, ‘एक बीच का रास्ता हो सकता है जहां विरोधी देशों या देश (रूस-यूक्रेन युद्ध पर) के लिए एक फुटनोट हो सकता है, लेकिन बाकी दुनिया स्पष्ट रूप से आक्रामकता देखती है, आक्रामकता जानती है और आक्रामकता के खिलाफ खड़ी है. लेकिन भारत का प्रयास आम सहमति पर पहुंचने का है.’
परिणाम दस्तावेज़ तैयार करने में आम सहमति की कमी पर एक सवाल के जवाब में, राजदूत गार्सेटी ने कहा, ‘हमें उम्मीद है कि एक फॉर्मूला होगा जो सफल होगा. इसे एकसाथ लाना अध्यक्ष की जिम्मेदारी है, लेकिन मुझे पूरा विश्वास है कि कई देश भारत के साथ अपने रिश्तों को नई ऊंचाइयों पर ले जा सकते हैं. मुझे उम्मीद है कि अन्य देश भारत के नेतृत्व का सम्मान करेंगे.’
उन्होंने कहा, ‘जब आप मेजबानी करते हैं तो आपको कुछ प्राथमिकताएं तय करने में सक्षम होना चाहिए, चाहे वह प्रधानमंत्री की जीवन पहल हो, जो यह देखती है कि हमारा व्यवहार पर्यावरण को कैसे प्रभावित करता है, या आपका ध्यान डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचे पर लाने का हो. उन तरीकों को देखना होगा जो आप कर सकते हैं और नई तकनीक से न्यूनतम आर्थिक स्तर पर भी लोगों को सशक्त बना सकते हैं.’
क्या है चीन का मसकद
भारत की G20 पहल पर चीन की आपत्ति न केवल सीमा पर चल रहे संघर्षों के संदर्भ में है, बल्कि इसलिए भी क्योंकि इसमें टिकाऊ जीवन शैली और महिला सशक्तिकरण से लेकर सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों तक के विषयों की एक विस्तृत श्रृंखला शामिल है. चीन ने जी20 की अध्यक्षता के लिए भारत के चुने गए नारे, “वसुधैव कुटुंबकम” (‘द वर्ल्ड इज वन फैमिली’ या ‘वन अर्थ, वन फैमिली, वन फ्यूचर’) पर भी असहमति जताई है, जिससे उसकी अड़ंगा लगाने की मंशा साफ प्रदर्शित होती है.
कुछ विशेषज्ञों का मानना कि चीन का रुख भारत को जी20 की अध्यक्षता के अंत में किसी भी प्रकार की “सफलता” का दावा करने से रोकने वाला एक सोचा-समझा कदम हो सकता है. पिछले साल बाली नेताओं के शिखर सम्मेलन में सर्वसम्मति हासिल करने में भारत की महत्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए यह दावा प्रासंगिक भी लगता है. इसमें प्रदर्शित सहयोग की भावना जारी रहने की उम्मीद थी लेकिन हाल के घटनाक्रम ने ऐसी उम्मीदों को झटका दिया है.
G20 और वैश्विक मुद्दों पर प्रभाव
भारत और चीन के बीच यह कलह न केवल द्विपक्षीय संबंधों पर असर डाल रही है, बल्कि जलवायु परिवर्तन से लेकर आर्थिक स्थिरता तक गंभीर वैश्विक चुनौतियों पर हो रही प्रगति भी रोक रही है. इससे अन्य G20 सदस्यों और पर्यवेक्षकों के कंधों पर अतिरिक्त बोझ पड़ता है, जो इन दोनों देशों के बीच बातचीत पर उत्सुकता से नजर बनाए हुए हैं.
वित्तीय एक्सपोजर और लोन रीस्ट्रक्चरिंग
कमजोर देशों के लिए लोन रीस्ट्रक्चरिंग पर चीन का अलग रुख चिंता का एक और मुद्दा है, खासकर अफ्रीका और एशिया में इसकी महत्वपूर्ण वित्तीय जरूरतों को देखते हुए. इस तरह के विरोधाभास से इन मामलों पर अंतरराष्ट्रीय सहमति हासिल करने में बड़ी चुनौतियां हो सकती है.
दोनों देशों के बीच चल रहे तनाव ने अंतरराष्ट्रीय राजनयिक प्रयासों में जटिलता की एक अतिरिक्त परत जोड़ दी है. हालांकि यह देखना बाकी है कि इस चुनौती से कैसे पार पाया जाएगा, लेकिन यह स्पष्ट है कि चीन का अड़ंगा लगाने वाला रूख न केवल भारत के साथ उसके संबंधों को प्रभावित कर रहा है, बल्कि वैश्विक सहयोग के लिए एक मंच के रूप में जी20 की समग्र प्रभावकारिता को भी नुकसान पहुंचा रहा है. यह न केवल चीन-भारत संबंधों की बल्कि व्यापक अंतरराष्ट्रीय शासन तंत्र के भविष्य की गतिशीलता पर भी प्रश्चचिह्न खड़े करती है.
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