60 के दशक में जब अमेरिका और सोवियत संघ (अब रूस) के बीच कोल्ड वॉर चल रहा था, तब चांद पर सबसे पहले पहुंचने की होड़ भी शुरू हो गई थी.
इस होड़ की शुरुआत अमेरिका 1958 में की. तब उसने पहला मून मिशन लॉन्च किया, लेकिन ये फेल हो गया. इसके बाद सालभर के अंदर अमेरिका और सोवियत संघ ने 10 मिशन लॉन्च किए. इनमें आठ फेल हो गए, जबकि दो में आंशिक सफलता ही मिली.
आखिरकार 12 सितंबर 1959 को सोवियत संघ का लूना-2 चांद की सतह तक पहुंच ही गया था. इसने सोवियत संघ को चांद तक पहुंचने वाला पहला देश बना दिया. फिर अगले महीने 4 अक्टूबर 1959 को लूना-3 भी सफल हो गया. जनवरी 1966 में सोवियत संघ ने लूना-9 में चांद की सतह पर लैंडर उतार दिया.
सोवियत संघ के चांद पर पहुंचने के तीन साल बाद 1969 में अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा ने अपोलो-11 लॉन्च किया. इसमें तीन अंतरिक्ष यात्रियों- नील आर्मस्ट्रॉन्ग, माइकल कॉलिंस और बज अल्ड्रिन को चांद पर भेजा गया. 21 जुलाई 1969 को नील आर्मस्ट्रॉन्ग चांद की सतह पर कदम रखने वाले दुनिया के पहले इंसान बने. हालांकि, इससे पहले ही अपोलो-9 और अपोलो-10 में अमेरिका ने अंतरिक्ष यात्रियों को चांद के पास तक भेज दिया था, लेकिन ये उतरे नहीं थे. इसके बाद साल 1972 तक अमेरिका ने 12 अंतरिक्ष यात्रियों को चांद पर भेजा.
इसके बाद चांद पर इंसानों को भेजने की होड़ बंद हो गई. हालांकि, चांद को खंगालने के लिए अमेरिका ने कई मिशन लॉन्च किए, लेकिन कुछ पास हुए तो कुछ फेल. साल 1976 में सोवियत संघ ने लूना-24 लॉन्च किया. 1991 में सोवियत संघ के टूटने के बाद 11 अगस्त 2023 को रूस ने पहला मून मिशन लूना-25 लॉन्च किया. लूना-25 चांद के दक्षिणी ध्रुव के पास लैंड करने वाला था, लेकिन क्रैश हो गया.
लूना-25 के लिए रूस 2010 से तैयारी कर रहा था. और भारत ने चंद्रयान-3 के लिए 2019 में तैयारी शुरू कर दी थी. इतनी लंबी तैयारी के बावजूद लूना-25 क्रैश हो गया और चंद्रयान-3 ने दक्षिणी ध्रुव के पास सॉफ्ट लैंडिंग कर दी. इस हिसाब से देखा जाए तो भारत की स्पेस एजेंसी इसरो के तीनों मून मिशन सफल रहे हैं.
चांद पर भारत की हैट्रिक सफल
इसरो अब तक चांद पर तीन बार मिशन भेज चुका है. साल 2008 में चंद्रयान-1 लॉन्च किया था. इसमें सिर्फ ऑर्बिटर था. इसने 312 दिन तक चांद का चक्कर लगाया था. ये दुनिया का पहला मून मिशन था, जिसने चांद पर पानी की मौजूदगी का पता लगाया था.
इसके बाद साल 2019 में चंद्रयान-2 को लॉन्च किया गया. इस बार इसरो ने ऑर्बिटर के साथ-साथ लैंडर और रोवर भेजा. इसका मकसक चांद के दक्षिणी ध्रुव के पास लैंडर उतारना था. लेकिन लैंडिंग से कुछ सेकंड पहले ही संपर्क टूट गया और हार्ड लैंडिंग हो गई. इस मिशन को न तो पूरी तरह फेल कहा जा सकता है और न ही पास. क्योंकि ऑर्बिटर तो इसका काम कर ही रहा था.
फिर, 14 जुलाई 2023 को तीसरा मून मिशन चंद्रयान-3 छोड़ा. इसमें ऑर्बिटर की बजाय प्रपल्शन मॉड्यूल लगाया गया. लैंडर और रोवर भी साथ हैं. लॉन्चिंग के 40 दिन बाद 23 अगस्त को चांद के दक्षिणी ध्रुव के पास चंद्रयान-3 के लैंडर ने सॉफ्ट लैंडिंग की. इसके साथ ही चांद के दक्षिणी ध्रुव के पास तक पहुंचने वाला भारत, दुनिया का पहला देश बन गया.
इन तीनों ही मिशन की लागत काफी कम थी. चंद्रयान-3 की लागत 615 करोड़ रुपये बताई जा रही है. जबकि, रूस ने लूना-25 के लिए 1,600 करोड़ से ज्यादा खर्च किए थे.
अंतरिक्ष में कहां है भारत?
पृथ्वी के बाहर की दुनिया देखने के लिए बरसों से तमाम देशों में होड़ सी मची हुई है. आजादी के बाद भारत ने भी अंतरिक्ष से जुड़े रहस्यों को जानने के लिए परमाणु ऊर्जा विभाग के तहत इंडियन नेशनल कमेटी फॉर स्पेस रिसर्च (INCOSPAR) नाम की यूनिट बनाई.
इस यूनिट का गठन 16 फरवरी 1962 को हुआ था. अगले ही साल 1963 में इस यूनिट ने पहला रॉकेट लॉन्च कर दिया. इस यूनिट के गठन के साढ़े सात साल बाद 15 अगस्त 1969 को इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन यानी इसरो की स्थापना हुई.
इसरो की स्थापना के बाद 1975 में भारत ने अपना पहला उपग्रह आर्यभट्ट लॉन्च किया. फिर 1994 में PSLV को लॉन्च किया गया. साल 2013 में इसरो ने मंगल ग्रह से जुड़ी जानकारियां जुटाने के लिए ‘मंगलयान’ छोड़ा.
चांद पर तीन मिशन- चंद्रयान-1, चंद्रयान-2 और चंद्रयान-3 लॉन्च कर चुका है. इससे पहले 2017 में इसरो ने 104 सैटेलाइट एकसाथ लॉन्च किए थे.
मंगल… मंगल… मंगल
60 के दशक से ही चांद की तरह मंगल ग्रह पर पहुंचने की होड़ भी अमेरिका और सोवियत संघ में शुरू हो गई थी. दोनों ही एक के बाद एक मंगल पर मिशन भेजे जा रहे थे, लेकिन सफलता हाथ नहीं लग सकी. बहुत बाद में दोनों मंगल पर पहुंचने में कामयाब हो पाए थे.
लेकिन साल 2013 में भारत ने मंगलयान लॉन्च किया. इसकी लागत 450 करोड़ रुपये के आसपास थी, जो बाकी देशों के मुकाबले काफी कम थी. मंगलयान पहली ही कोशिश में मंगल पर पहुंच गया था.
मंगलयान की कामयाबी के बाद ही भारत ने इसरो ने मंगलयान-2 को लॉन्च करने की घोषणा कर दी थी. मंगलयान-2 को फ्रांस की मदद से लॉन्च किया जाएगा. इस मिशन में ऑर्बिटर के साथ-साथ लैंडर और रोवर भी भेजे जाएगा. अगले साल यानी 2024 में इसरो इस मंगलयान-2 लॉन्च करने की तैयारी कर रहा है.
चंदा मामा के बाद सूरज चाचू की बारी
चंदा मामा पर तो भारत तीन बार पहुंच चुका है. लेकिन अब सूरज के पास तक पहुंचने की तैयारी भी हो रही है. इसके लिए इसरो आदित्य-L1 मिशन लॉन्च करने जा रहा है. ये मिशन अगले ही महीने यानी सितंबर में लॉन्च होगा.
आदित्य-L1 का मकसद सूरज की स्टडी करना होगा. ये मिशन पांच साल तक एक्टिव रहेगा. इसमें सात पेलोड्स होंगे, जो अलग-अलग तरह से सूरज की स्टडी करेंगे. ये भारत का पहला सूर्य मिशन होगा.
आदित्य-L1 में लगे कुछ पेलोड्स सीधे सूरज की रोशनी देखेंगे. जबकि, बाकी इसके आसपास मौजूद कणों का अध्ययन करेंगे. इसके अलावा, इस मिशन में सूरज की बाहरी परत (कोरोना) की भी स्टडी की जाएगी.
अंतरिक्ष में होंगे भारतीय
तीन अप्रैल 1984 को राकेश शर्मा अंतरिक्ष तक पहुंचने वाले पहले भारतीय थे. लेकिन वो रूस के सोयूज T-11 यान से वहां पहुंचे थे.
अगली साल इसरो अंतरिक्ष में तीन भारतीयों को भेजने की तैयारी कर रहा है. इसमें दो पुरुष और एक महिला अंतरिक्ष यात्री होगी. इस मिशन को गगनयान नाम दिया गया है.
साल 2007 से ही इसरो अंतरिक्ष में इंसान को भेजने की योजना पर काम कर रहा है. हालांकि, अब तक ये सपना पूरा नहीं हो सका है. गगनयान के जरिए अगले साल भारतीयों को अंतरिक्ष भेजा जा सकता है. ये अंतरिक्ष पृथ्वी से 400 किलोमीटर दूर रहेंगे. ये एक से तीन तक पृथ्वी के चारों तरफ गोलाकार ऑर्बिट में चक्कर काटेंगे और फिर समुद्र में लैंड करेंगे.
शुक्र है… उसके लिए शुक्रयान है
चांद-सूरज और मंगल ही नहीं, इसरो की नजर पृथ्वी से 6 करोड़ किलोमीटर से ज्यादा दूर शुक्र ग्रह पर भी है. इसके लिए इसरो ने शुक्रयान मिशन का ऐलान किया है.
शुक्रयान का आइडिया 2012 में आया था. इसे 2023 की शुरुआत में ही भेजा जाना था. लेकिन कोविड की वजह से इसमें देरी हो गई. अब इसे अगले साल लॉन्च किया जा सकता है.
शुक्रयान में एक स्पेसक्राफ्ट शुक्र ग्रह के चारों ओर चक्कर लगाकर उसकी स्टडी करेगा. इसकी लॉन्चिंग की शेड्यूल डेट दिसंबर 2024 है, लेकिन इसमें भी देरी होती दिख रही है. अगर 2024 में इसे लॉन्च नहीं किया गया तो फिर 2026 या 2028 में लॉन्च किया जा सकता है. वो इसलिए क्योंकि हर 19 महीने बाद पृथ्वी और शुक्र सबसे नजदीक होते हैं. लेकिन ये दो विन्डो भी मिस कर गए तो फिर 2031 में इसे लॉन्च किया जाएगा.
2031 में ही अमेरिका और यूरोपीयन स्पेस एजेंसी ने भी शुक्र मिशन प्लान कर रखे हैं. इनके नाम वेरिटास और एन्विजन हैं. लेकिन अगर इनसे पहले भारत का शुक्रयान कामयाब हो जाता है, तो ऐसा करने वाला भारत, दुनिया का पहला देश बन जाएगा.
निसार… जो प्राकृतिक आपदाओं की पहले ही जानकारी दे देगा
भारत की इसरो और अमेरिका की नासा मिलकर निसार मिशन पर काम कर रहे हैं. निसार यानी इंडिया-यूएस बिल्ट सिंथेटिक अपर्चर रडार.
निसार की बदौलत दुनिया में आने वाली किसी भी प्राकृतिक आपदा का अंदाजा पहले ही लगाया जा सकता है. निसार को धरती की निचली कक्षा में स्थापित किया जाएगा. ये हर 12 दिन में पूरी दुनिया का नक्शा बनाएगा. लगातार धरती के इकोसिस्टम, बर्फ की मात्रा, पेड़-पौधे, बायोमास, समुद्री जलस्तर, भूजल का स्तर, प्राकृतिक आपदाएं, भूकंप, सुनामी, ज्वालामुखी और भूस्खलन आदि पर नजर रखेगा.
निसार में L और S ड्यूल बैंड सिंथेटिक अपर्चर रडार लगा है जो सार तकनीक के जरिए बेहद बड़े इलाके का हाई रेजोल्यूशन डेटा दिखाता है. इसमें इंटिग्रेटेड रडार इंस्ट्रूमेंट स्ट्रक्चर (ISRI) भी लगा है. दोनों मिलकर एक ऑब्जरवेटरी का काम करते हैं.
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