चुनाव की तारीखों की घोषणा भले न हुई हो, 2024 के लिए सियासी बिगुल तो लगातार बज रहे हैं – और ये हाल सिर्फ बीजेपी का नहीं है, विपक्षी गठबंधन INDIA भी 2024 में कोई कसर बाकी नहीं रखना चाहता.
बीजेपी की तो बात ही निराली है. चुनावी प्रदर्शन के साथ साथ बीजेपी एडवांस प्लानिंग में भी चार कदम आगे ही रहती है. मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के लिए उम्मीदवारों की पहली लिस्ट देख कर तो ऐसा ही लगता है.
ये तो पहले से ही साफ है कि 2024 विपक्षी खेमे के ज्यादातर नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चैलेंज करने में जी जान से जुटा है. मुकाबला मोदी बनाम विपक्ष तो होना है, लेकिन विपक्ष का नेता कौन होगा? ये सब भले न बताया गया हो, कांग्रेस नेता राहुल गांधी तो स्थायी भाव के रूप में मोर्चे पर रहते ही हैं. हां, राहुल गांधी की लोक सभा सदस्यता खत्म होने के दौरान कुछ दिन थोड़ा सन्नाटा जरूर छाया रहा.
ऐसा भी नहीं है कि आगे की लड़ाई मोदी बनाम राहुल गांधी या कोई और ही है. मतलब, विपक्षी खेमे के किसी नेता से ही चुनौती मिल सकती है. चर्चाएं तो बीजेपी के अंदर से भी आम हो चुकी हैं. मोदी के बाद कौन? अव्वल तो बीजेपी के अंदर भी मोदी के मुकाबले में अभी दूर दूर तक कोई नहीं है, लेकिन उस जगह पर नजर तो बहुतों की टिकी है. समर्थकों के अपने-अपने फेवरेट हैं ही. अमित शाह के समर्थक खुलकर सामने न आते हों, योगी के तो सोशल मीडिया पर मुखर हैं.
देखा जाये तो ऐसा लगता है कि बीजेपी में सिर्फ सवाल है – विपक्ष में तो पूरा बवाल है!
सबसे बड़ा सवाल – मोदी का उत्तराधिकारी कौन?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का उत्तराधिकारी तो वो कोई भी हो सकता जिसको भारत के लोग प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बिठा दें. 2024 न सही, 2029 में. या फिर आने वाले दिनों में.
विपक्षी खेमे में तो प्रधानमंत्री पद के दावेदार बहुत सारे नेता हैं, लेकिन बीजेपी के अंदर भी ऐसे कई नाम हैं जो मोदी की गद्दी संभालने को जब तक बेताब लगते हैं. 2019 के चुनाव से पहले भी कुछ नाम हवा में उछल ही रहे थे.
मोदी के उत्तराधिकारी का सवाल भी कोई नया नहीं है. इसे लेकर पहले भी कई सर्वे आ चुके हैं. कॉमन बात यही रहती है कि मोदी के कद के आगे दूर दूर तक कोई नहीं टिकता. न विपक्ष में न बीजेपी के अंदर.
अभी अभी आये सर्वे में भी स्थिति पहले जैसी ही लगती है. सर्वे के सैंपल में शामिल 52 फीसदी लोगों ने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद के लिए सबसे उपयुक्त नेता बताया है.
इंडिया टुडे और सी-वोटर के मूड ऑफ द नेशन सर्वे की बात करें तो प्रधानमंत्री पद के लिए राहुल गांधी की लोकप्रियता में इजाफा हुआ है. लेटेस्ट सर्वे में 16 फीसदी लोगों ने अगले प्रधानमंत्री के रूप मे राहुल गांधी अपनी पसंद बतायी है. छह महीने पहले जनवरी, 2023 में ऐसी भावना रखने वाले 14 फीसदी लोग ही थे.
अब बात अगर बीजेपी के अंदर की करें तो 2019 में भी नितिन गडकरी की प्रधानमंत्री पद के एक दावेदार के रूप में खासी चर्चा रही. तब तक जब तक कि आम चुनाव के नतीजे नहीं आ गये. एक बार फिर उनका नाम यूं ही चर्चा में है, लेकिन सर्वे में वो महज 15 फीसदी लोगों की पसंद बन कर तीसरे स्थान पर चल रहे हैं.
बीजेपी के अंदर मोदी के उत्तराधिकारी के रूप में इस बार 29 फीसदी लोगों की पसंद बन कर अमित शाह का नाम सबसे आगे है, जबकि यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ 26 फीसदी लोगों की पसंद बन कर दूसरे नंबर पर पहुंच गये हैं. पहले कराये गये ऐसे ही एक सर्वे में योगी आदित्यनाथ ने अमित शाह को मामूली अंतर से पछाड़ दिया था.
केवल समकालीन नेताओं की कौन कहे मोदी को तो लोग अटल बिहारी वाजपेयी से भी बेहतर प्रधानमंत्री मान रहे हैं. मोदी को जहां 41 फीसदी लोग बेस्ट पीएम मानते हैं, वाजपेयी को ऐसा मानने वाले 12 फीसदी ही हैं.
कांग्रेस के प्रधानमंत्रियों की लिस्ट में 6 फीसदी लोगों की पसंद बन कर जवाहरलाल नेहरू फिसड्डी बन गये हैं. नेहरू के मुकाबले मनमोहन सिंह 11 फीसदी और इंदिरा गांधी 15 फीसदी लोगों की अब भी पसंद बनी हुई हैं.
मोदी को राहुल गांधी टक्कर दे पाएंगे क्या?
मोदी नाम को लेकर मानहानि केस में सुप्रीम कोर्ट की दखल के बाद राहुल गांधी एक बार फिर प्रधानमंत्री पद की रेस में लौट आये हैं. हालांकि, फर्क बस इतना ही पड़ा है कि वो फिर से संसद की कार्यवाही में बतौर कांग्रेस सांसद हिस्सा लेने लगे हैं.
मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर बहस शुरू होने से ठीक पहले लौटे राहुल गांधी का संसद में जोरदार स्वागत का माहौल देखा गया. कांग्रेस के साथ साथ विपक्षी गठबंधन INDIA के नेताओं के चेहरे पर भी राहुल गांधी को लेकर खुशी के भाव देखे गये.
लेकिन संसद से जाते जाते राहुल गांधी ने विवादों को दावत दे ही डाली. 2018 में मोदी के गले मिल कर आंख मारने जैसा तो नहीं, लेकिन फ्लाइंग किस को लेकर काफी देर तक बवाल चला.
मोदी भले ही भरी संसद से राहुल गांधी को कांग्रेस की तरफ से बार बार लांच किये जाने का मजाक उड़ायें, लेकिन कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश चुनाव के नतीजों ने गांधी परिवार का आत्मविश्वास तो बढ़ाया ही है.
एक बार पीछे लौट कर देखें तो मालूम होता है कि 2019 के चुनाव नतीजों पर ठीक पहले हुए विधानसभा चुनावों के नतीजों का कोई फर्क नहीं पड़ा – देश की राजनीति एक बार फिर उसी मोड़ पर खड़ी देखी जा सकती है.
आम चुनाव से पहले मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में सरकारें बना लेने के बाद कांग्रेस का गांधी परिवार पर यकीन हद से ज्यादा बढ़ गया था, तीनों राज्यों में लोक सभा की ज्यादातर सीटें बीजेपी के खाते में चली गयीं – और मध्य प्रदेश में तो सरकार भी.
तीनों ही राज्यों में बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही सत्ता पर काबिज होने की कोशिश में जी जान से जुटी हैं, लेकिन विधानसभा चुनाव के रिजल्ट का अगले आम चुनाव पर कोई असर होगा?
INDIA का नेता कौन होगा?
देश के विपक्षी दलों के बीच कांग्रेस अभी से उतनी ही असरदार महसूस करने लगी है, जितनी 2018 के आखिर में तीन राज्यों में सरकार बनाने के बाद.
कांग्रेस नेतृत्व के ऐसा समझने के कई कारण लगते हैं. बीजेपी को दो राज्यों में शिकस्त देकर सरकार बना लेने के अलावा भारत जोड़ो यात्रा ने काफी हौसलाअफजाई की है. और इसी क्रम में राहुल गांधी की संसद सदस्यता बहाल हो जाना भी कांग्रेस के पक्ष में ही गया है.
राहुल गांधी के इस प्रभाव की पुष्टि सर्वे भी कर रहा है. अभी तक विपक्षी गठबंधन INDIA की तरफ कोई चेहरा घोषित नहीं हुआ है, लेकिन सर्वे में शामिल 24 फीसदी लोग राहुल गांधी को विपक्ष के सबसे बड़े चेहरे के तौर पर देख रहे हैं.
राहुल गांधी विपक्षी खेमे में आगे जरूर लग रहे हैं, लेकिन ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल की दावेदारी खत्म नहीं हुई है.
राहुल गांधी के बाद जो नेता लोगों की पसंद बन रहे हैं, यूं भी उनके प्रति वैसी ही धारणा बनी हुई लगती है. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल दोनों को बराबर यानी 15-15 फीसदी लोग विपक्ष की तरफ से मुख्य नेता मान रहे हैं.
और ये कौन कह सकता है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने हथियार डाल दिया है. भले ही माना जाता हो कि बेंगलुरू की बैठक से वो बैरंग लौट आये, लेकिन उनकी खामोशी भी तो रह रह कर तूफान खड़ा करती ही है.
नेताओं की राजनीतिक पकड़ और मार्केट में शक्ति प्रदर्शन अपनी जगह है, लेकिन वक्त से बड़ा ताकतवर कौन होता है भला. एचडी देवगौड़ा और आईके गुजराल का प्रधानमंत्री बनना अपनेआप में मिसाल है.
www.aajtak.in
Source link