वर्ष 2021 के जुलाई में प्रकाशित इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च के एक शोधपत्र के अनुसार, भारत में सिकल सेल एनीमिया (एससीए) का दूसरा सबसे अधिक प्रसार है. यहां करीब दो करोड़ लोग इस जेनेटिक रोग से पीड़ित हैं. आधिकारिक आंकड़े मौजूद नहीं हैं, पर इससे प्रभावित राज्यों की फेहरिस्त में मध्य प्रदेश को सबसे ऊपर माना जाता है. इसीलिए शायद यह ठीक ही था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय सिकल सेल एनीमिया उन्मूलन मिशन की शुरुआत 1 जुलाई को राज्य के पूर्वी हिस्से में शहडोल से की. मिशन से देश की स्वतंत्रता के 100वें साल यानी 2047 तक एससीए को जड़ से मिटाने की उम्मीद की जा रही है.
एससीए आनुवंशिक रक्तविकार है, जो लाल रक्त कोशिकाओं पर असर डालता है और माता-पिता से बच्चों को हो जाता है. मेडिकल साइंस के पास इसका स्थायी इलाज अब तक नहीं है. मिशन इस परेशानी को परस्पर प्रभाव वाली दो स्तरों पर देखता है: स्थूल और सूक्ष्म. पहला, इसके व्यापक कवरेज को दर्शाता है: 17 राज्य और 278 जिले. मध्य प्रदेश स्वास्थ्य सेवा के कमिशनर डॉ. सुदम खड़े कहते हैं, ”राष्ट्रीय स्तर का कार्यक्रम नहीं होने से अलग-अलग राज्य अपने दम पर इस रोग से निबट रहे थे. अब अतिरिक्त धन मिलेगा और एससीए के उन्मूलन का काम दिशानिर्देशों के अनुसार तथा राज्यों के बीच ज्यादा आपसी सहयोग से आगे बढ़ेगा. डायग्नोसिस और मैनेजमेंट में गति आएगी.”
इसका दिलचस्प हिस्सा सूक्ष्म स्तर पर है: व्यक्तियों के लिए एक हेल्थ कार्ड बनाना जो नई तरह की कुंडली होगी. वह ‘संवेदनशील लोगों’ के टेस्ट पर आधारित है. आधिकारिक तौर पर इसे जेनेटिक काउंसलिंग कार्ड कहा गया है, जिसमें धारक के ब्योरे होंगे कि उसे एससीटी (सिकल सेल ट्रेट) या एससीडी (सिकल सेल डिजीज) है या नहीं. एडवाइजरी में बताया गया है कि धारक किससे शादी कर सकता है और किससे नहीं. मसलन, एससीडी से ग्रस्त व्यक्ति को ऐसे व्यक्ति से शादी नहीं करनी चाहिए जिसे एससीडी हो, क्योंकि इससे उत्पन्न संतान को एससीडी होना तय है. केंद्र सरकार 0-40 वर्ष के बीच की आयु के सात करोड़ लोगों की जांच करके कुंडली बनाने की उम्मीद कर रही है.
एससीए आखिर क्या है? लाल रक्त कोशिकाएं (आरबीसी) हीमोग्लोबिन की वाहक हैं, जो शरीर के सभी हिस्सों में ऑक्सीजन पहुंचाता है. स्वस्थ आरबीसी आकार में गोल होती हैं और रक्त वाहिकाओं से आसानी से गुजर जाती हैं. एससीए में आरबीसी अंग्रेजी के अक्षर ‘सी’ आकार की हो जाती हैं, जो सिकल या हंसिये से मिलता-जुलता है और इसीलिए इसका नाम सिकल सेल पड़ा. सिकल आकार की कोशिका चिपचिपी होती है और रक्त वाहिकाओं से आसानी से नहीं गुजर पाती, जिससे शरीर के विभिन्न हिस्सों में ऑक्सीजन की आपूर्ति कम हो जाती है. इससे अंगों में दर्द होता है.
इलाज मोटे तौर पर दर्द का प्रबंधन और सावधानियों पर आधारित है. अमेरिका की राष्ट्रीय जनस्वास्थ्य एजेंसी सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल ऐंड प्रिवेंशन का कहना है कि एफडीए से स्वीकृत अकेला निदान बोन मैरो ट्रांसप्लांट है, जो बहुत जोखिम भरा और रोगी तथा दाता के मिलान पर आधारित है. एफडीए ने मरीज की उम्र के आधार पर चार इलाजों को मंजूरी दी है. इस्तेमाल की जाने वाली दवाइयों में हाइड्रॉक्सीयूरिया, एल-ग्लूटामाइन, वोक्सेलोटर और क्रिलानलिजुमैब शामिल हैं. एससीडी का प्रकोप मुख्यत: देश की आदिवासी आबादी में है. केंद्रीय आदिवासी मामलों का मंत्रालय समुदाय में हर 86 जन्म पर एक में इसका फैलाव आंकता है. मध्य प्रदेश में हीमोग्लोबिनोपैथी मिशन सभी 89 आदिवासी प्रखंडों में चल रहा है. अब तक करीब 16 लाख लोगों की जांच हो चुकी है, जिनमें 18,866 एससीटी तो 6,500 एससीडी से ग्रस्त मिले.
‘प्रोजेक्ट सिकल’ के प्रेसिडेंट और रायपुर के रहने वाले डॉ. ए.आर. दल्ला कहते हैं, ”एससीडी से ग्रस्त लोगों के लिए सबसे अच्छा समाधान यही होगा कि शादी करने और बच्चे पैदा करने से बचें. व्यावहारिक स्तर पर लोगों को खून की जांच के लिए तैयार करना भी चुनौती है. दुर्भाग्य से सिकल सेल एनीमिया का प्रकोप काली त्वचा वाले लोगों और गरीब समूहों में ज्यादा है. शायद यही वजह है कि इस पर नीति निर्माताओं और मीडिया का भी ज्यादा ध्यान नहीं जाता.”
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