राजस्थान में 2 दशकों से लगातार आसानी से जीतने वाली उदयपुर सीट अब बीजेपी के लिए चुनौती बन रही है. 2003 से लगातार जीतते आ रहे गुलाबचंद कटारिया के चुनाव से करीब 9 महीने पहले असम के राज्यपाल बनने के बाद यह सीट खाली है. इसी मौके को भुनाते हुए बीजेपी की परंपरागत सीट पर कांग्रेस की पूरी नजर है.
कहा जाता है कि इस सीट से मेवाड़-वागड़ की 30 से ज्यादा सीटों पर इसका प्रभाव पड़ता है. कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता और राहुल गांधी के करीबी गौरव वल्लभ और सीएम अशोक गहलोत के करीबी दिनेश खोड़निया पर टिकट की पूरी कोशिश में है. बरसों बाद कटारिया के जाने से मिले इस स्वर्णिम अवसर को कांग्रेस भी खोना नहीं चाहती है. हालांकि राजस्थान में सबसे ज्यादा कांग्रेस की गुटबाजी भी उदयपुर में मानी जाती रही है, ऐसे में कांग्रेस में किसी के भी टिकट मिलने पर अंतर्कलह की स्थिति तय है.
उधर, कटारिया के बाद बीजेपी में उनके परिवार से कोई राजनैतिक उत्तराधिकारी नहीं होने से उनके करीबी नेताओं के साथ बाहरी नेता भी इस सीट से टिकट पाने की जुगत में हैं. वही पूर्व राजपरिवार के सदस्य लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ की पिछले महीनों में बीजेपी नेताओं से बढ़ी निकटता सियासी चर्चाओं को बल दे रही है. हालांकि सियासी जानकार मानते हैं कि लक्ष्यराज सिंह विधानसभा चुनाव लड़ने के इच्छुक नहीं हैं. वे आगामी दिनों में चित्तौड़गढ़ लोकसभा से अपनी दावेदारी पेश कर सकते हैं.
दूसरी कतार के नेताओं के लिए ज्यादा मशक्कत
दरअसल, कटारिया के असम जाने से बाद से करीब 6 महीनों से यह सीट खाली है. बीजेपी में सबसे ज्यादा मशक्कत यहां सेकंड लाइन में चल रहे नेताओं के आगे आने की है. राज्यपाल बनने के बाद भी कई कार्यक्रमों में आए कटारिया ने सब संगठन पर छोड़ने की बात कही है. इस सीट पर बीजेपी के प्रमुख दावेदारों में शहर जिलाध्यक्ष रविन्द्र श्रीमाली और नगर निगम के उपमहापौर पारस सिंघवी हैं. इनके अलावा रजनी डांगी, दिनेश भट्ट, प्रमोद सामर और अलका मूंदड़ा भी टिकिट की दौड़ में माने जाते हैं. यही नहीं जिले की मावली विधानसभा से विधायक धर्मनारायण जोशी भी अपनी सीट बदलकर इस बार उदयपुर शहर से टिकट पाकर चुनाव लड़ने की मंशा रखते हैं.
हालांकि, इन नामों में 67 वर्षीय रविन्द्र श्रीमाली को छोड़कर को सबके नाम पर एक-दूसरे नेताओं और कार्यकर्ताओं का विरोध है. पारस सिंघवी और प्रमोद सामर के नाम पर कार्यकर्ताओं में आंतरिक विरोध है. कहा जाता है कि कटारिया भी पारस सिंघवी के नाम पर सहमत नहीं है. डूंगरपुर में नगर परिषद में सभापति रह चुके केके गुप्ता भी यहां से टिकिट चाहते थे, मगर पिछले 2 महीनों में उनके नाम पर लगातार हुए विरोध के बाद वे किसी दूसरी सीट पर फोकस कर रहे हैं. जैन और ब्राह्मण समाज दोनों अपने-अपने समाज को मौका देने की मांग कर रहे हैं, ऐसे में बीजेपी आलाकमान के सामने भी यहां टिकट के नाम पर सहमति बना पाना बड़ी चुनौती है.
सामर, डांगी, मूंदड़ा और श्रीमाली सब ठोक रहे दावा
कटारिया के करीबी प्रमोद सामर और रजनी डांगी हैं तो पारस सिंघवी ओम बिड़ला और संघ के स्थानीय पदाधिकारियों की पसंद कहे जाते हैं. बीजेपी में महिला मोर्चा की प्रदेशाध्यक्ष रही अलका मूंदड़ा सतीश पूनिया गुट से हैं. वहीं, 2 बार लगातार बीजेपी जिलाध्यक्ष रह चुके रविन्द्र श्रीमाली भी नगर परिषद में सभापति और युआईटी में चैयरमैन रह चुके हैं. कहा जा रहा है कि श्रीमाली के नाम पर आम कार्यकर्ताओं से लेकर कटारिया और कई बड़े नेताओं की मौन सहमति है. जबकि सिंघवी और सामर के नाम पर सबसे ज्यादा विरोध की स्थिति बन सकती है.
तीन बार सीएम रहे मोहनलाल सुखाडिया की इस सीट पर कांग्रेस 1998 के बाद जीत नहीं पाई है. 2003 से यहां 78 वर्षीय कटारिया जीतकर राजस्थान में कभी कैबिनेट मंत्री तो कभी नेता प्रतिपक्ष बने हैं. कांग्रेस भी कटारिया के जाने से बीजेपी की इस सीट पर जीतने की आस में है. ऐसे में 3-4 महीने से कांग्रेस प्रवक्ता गौरव वल्लभ और डूंगरपुर के सागवाड़ा के रहने वाले दिनेश खोड़निया एक्टिव हैं. इन दोनों के नाम आने से उदयपुर के स्थानीय दावेदार खफा है.
पूर्व केंद्रीय मंत्री के भाई और बहु भी दावेदारी में
हाल ही हुई राजस्थान कांग्रेस स्क्रीनिंग कमेटी की मीटिंग में कमेटी अध्यक्ष गौरव गोगाई के सामने भी खुलकर विरोध जताया था. इनके अलावा उदयपुर से पंकज शर्मा, दिनेश श्रीमाली, राजीव सुहालका, जगदीशराज श्रीमाली, लालसिंह झाला भी टिकिट की दौड़ में हैं. यही नहीं पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. गिरिजा व्यास के छोटे भाई गोपाल शर्मा और बहु हितांशी शर्मा भी दावेदारी में पीछे नहीं हैं.
बीजेपी के शहर जिलाध्यक्ष रविन्द्र श्रीमाली बताते हैं कि कटारिया की राजनीति राजस्थान में ही नहीं, पूरे देश में जानी जाती है. पार्टी में इस विधानसभा के टिकट का फैसला भी आलाकमान करेगा. वही सभी को मान्य होगा. उदयपुर शहर से 10 से ज्यादा लोगों ने दावेदारी रखी है. बीजेपी ने पूरी तैयारी कर रखी है, कांग्रेस के कुशासन को हटाने के साथ उदयपुर से रिकॉर्डतोड़ मतों से जीत हासिल करेंगे. हमारे यहां गुटबाजी नहीं जैसा कुछ नहीं है.
कांग्रेस का दावा, आपस में लड़ रहे हैं BJP वाले
वहीं, कांग्रेस के शहर जिलाध्यक्ष फतेहसिंह राठौड़ ने कहा है कि कटारिया के जाने के बाद बीजेपी वाले लड़ रहे हैं. नगर निगम में बीजेपी बोर्ड से जनता परेशान है. यही जनता अब शहर विधानसभा से कांग्रेस को जीतकर आगे भेजेगी. टिकिट मांगने का अधिकार सभी को है. हमारे कार्यकर्ता चाहते हैं कि बाहरी को टिकट नहीं मिलकर लोकल दावेदार को मौका मिले. गौरव वल्लभ का खोड़निया का भी कोई विरोध नहीं है. हम एकजुट होकर लड़ेंगे और इस बार रिकॉर्ड तोड़ मतों से जीतकर बताएंगे.
बता दें कि उदयपुर शहर विधानसभा में कुल 2,42,501 वोटर हैं. 2018 से 2023 के बीच 5005 नए वोटर्स जुड़े हैं. इस सीट पर लगभग 42-44 हजार जैन और 41-43 हजार ब्राह्मण मतदाता हैं. इसके अलावा ओबीसी की अलग-अलग जातियों के करीब 50 हजार वोटर्स और मुस्लिम में 25 हजार वोटर्स हैं. सबसे कम वोटर्स शहर में जनजाति वर्ग हैं. अनुसूचित जाति के भी करीब 15 हजार वोटर्स हैं। पिछले 4 चुनावों में यानी 2003, 2008, 2013, 2018 में यहां बीजेपी जीतती आ रही है। इस सीट को संघ का गढ़ माना जाता है। कटारिया से पहले मोहनलाल सुखाड़िया, डॉ गिरिजा व्यास और भानु कुमार शास्त्री भी यहां से जीतकर विधानसभा पहुंचे है।
2018 से फरवरी 2023 तक गुलाबचन्द कटारिया यही से विधायक रहते हुए राजस्थान विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष के पद पर थे. कटारिया 78 वर्ष के हैं. कटारिया की पत्नी अनिता कटारिया के अलावा उनकी 5 बेटियां हैं, जो सभी विवाहित हैं. कटारिया ने ग्रेजुएशन के अलावा वकालत LLb भी की है. वे BEd भी कर चुके हैं. राजनीति में आने से पहले अध्यापक भी रहे हैं. परिवार के करीबियों से उनका राजनीतिक उत्तराधिकारी नहीं है. कटारिया सोहराबुद्दीन एनकाउंटर मामले में चर्चाओं में रह चुके हैं. हालांकि उन्हें इस मामले में बरसों पहले क्लीन चिट मिल चुकी है.
ये हैं प्रमुख मुद्दे…
पिछले 5 वर्षों में देवास परियोजना, स्मार्ट सिटी परियोजना और आयड़ नदी पर थोड़ा बहुत काम हुआ है. हाई कोर्ट बेंच और झील विकास प्राधिकरण का मुख्यालय यहां एक बड़ा मुद्दा है.
दुनिया भर में चर्चित कन्हैया हत्याकांड भी यहीं से…..
उदयपुर के मालदास स्ट्रीट में 28 जून 2022 को एक दुकान में घुसकर 2 कट्टरपंथियों ने कन्हैयालाल साहू नाम के टेलर की गला काटकर निर्मम हत्या कर दी थी. दुनिया भर में यह हत्याकांड काफी चर्चित रहा है. कन्हैया ने नूपुर शर्मा के समर्थन में पोस्ट किया था. इस सीट के साथ राजस्थान के चुनाव में यह मुद्दा भी तय माना जा रहा है.
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