अघोरी शब्द संस्कृत के अघोर से निकला है, जिसका मतलब है जिसे डर न लगे. ये शैव साधु होते हैं जो कपालिका परंपरा को मानते हैं. यानी कपाल से जुड़ी साधना को मानने वाले. अघोरियों के पास हमेशा मानव मुंड होता है, जो साधना का हिस्सा होता है.
नागा साधुओं के नाम के ओरिजिन पर विद्वानों का अलग-अलग मत है. नागा शब्द का संस्कृत में मतलब है, जो पहाड़ों या ऊंचे स्थानों पर रहते हों. हालांकि इसका एक अर्थ नग्न या कपड़ों के बगैर रहने वाला भी है.
नागा संन्यासी कहां रहते हैं, इस बारे में खास जानकारी नहीं मिलती. मेलों, खासकर कुंभ या अर्धकुंभ के दौरान ये एकदम से दिखाई देते हैं और फिर गायब हो जाते हैं. वे अपने अखाड़ों में हिमालय की तरफ लौट जाते हैं. ज्यादातर संन्यासी गुप्त तरीके से हिमाचल, उत्तराखंड के पहाड़ों पर जीवन बिताते हैं.
अब बात करें अघोरियों की, तो वे श्मशान में रहते हैं. इसके अलावा बहुत से लोग ऐसी जगहों पर रहते हैं, जो अंधेरी और सुनसान हों. माना जाता है कि अघोरी संप्रदाय के एक गुरु बाबा कीनाराम गुजरात में ऐसी ही जगहों पर रहा करते थे. 18वीं सदी में हुए बाबा कीनाराम ने जो भी काम किए, अघोरी संप्रदाय उन्हें ही फॉलो करता है.
अगर खाने की बात करें तो नागा और अघोरी दोनों ही नॉन-वेजिटेरियन हैं. अपवाद के तौर पर कुछ नागा संन्यासी शाकाहार भी करते हैं. नागा भिक्षा मांगकर पेट भरते हैं. वे ज्यादा से ज्यादा 7 घरों में भिक्षा मांग सकते हैं. इतने में जो भी मिलेगा, उन्हें उसी में संतुष्ट रहना होता है. दूसरी तरफ अघोरियों के साथ ये रुकावट नहीं. वे इंसानी मांस भी खा सकते हैं.
कई सारी डॉक्युमेंट्रीज और इंटरव्यू के दौरान अघोरी संप्रदाय के लोगों ने माना कि वे श्मशान से अधजला मांस लेकर खाते हैं. ये भी उनकी साधना का एक हिस्सा है. मान्यता है कि अगर इसमें भी वे विचलित न हों, घृणा न हो, या डर न लगे तो वे साधना में पक्के हो रहे हैं.
वैसे तो ये दोनों ही संन्यासी शिव की पूजा करते हैं, लेकिन बेसिक साधना के तरीके अलग-अलग हैं. जैसे नागाओं का काम इंसानों और धर्म की रक्षा करना है. इसके लिए वे पारंपरिक हथियार चलाने की भी ट्रेनिंग लेते हैं.
दूसरी तरफ अघोरी शिव पूजा करते हुए तंत्र साधना करते हैं. वे इस ताकत का इस्तेमाल लोगों की मदद में करते हैं. अघोरी 3 तरह की साधनाएं करते हैं, शव साधना, जिसमें शव को मांस और मदिरा का भोग लगाया जाता है. शिव साधना, जिसमें शव पर एक पैर पर खड़े होकर शिव की साधना की जाती है और श्मशान साधना, जहां हवन किया जाता है.
नागाओं के बारे में एक बात ये भी अलग है कि वे लगातार धर्म की रक्षा की बात करते हैं. नागाओं के अलग-अलग अखाड़े और अलग गुरू होते हैं. हालांकि ट्रेनिंग सबको एक ही मिलती है कि वे धर्म को बचाने के लिए जो कुछ बन पड़े, करें. इसमें हथियार उठाना भी शामिल है. कई बार राजा-महाराज विदेशी आक्रमण के दौरान नागा योद्धा साधुओं का सहयोग लिया करते थे.
नागा संप्रदाय में गुरू और अखाड़ा होता है. इससे जुड़ने पर व्यक्ति को सबसे पहले फैमिली को छोड़ना होता है. परिवार से सारे रिश्ते खत्म करने के बाद वो खुद अपना श्राद्ध करता है, यानी अपने-आप से भी उसका सारा नाता और मोह-माया खत्म. इसके बाद इंद्रियों को वश में करने की लंबी प्रक्रिया चलती है. ये सबकुछ 10 या उससे ज्यादा सालों तक भी चल सकता है, जिसके बाद आखिरी स्टेज आती है. इसमें यौन इच्छा पर नियंत्रण सीखना होता है. इसके बाद नागा साधु तैयार हो जाता है, जो असल में एक योद्धा होता है.
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