गुरु को सभी देवों से उच्च माना जाता है. पूरा देश आज गुरु को सम्मान देने के लिए शिक्षक दिवस मना रहा है. वहीं, रांची जिले के सोनाहातू प्रखंड लांदुपडीह गांव के ग्रामीणों ने एक शिक्षक को ऐसा सम्मान दिया जो मिसाल बन गया है.
लांदुपडीह गांव में ग्रामीणों ने एक अलग ही डिजाइन का मंदिर बनाया है जिसके अंदर एक घोड़े के साथ दो मूर्तियां स्थापित की गई हैं. ये मूर्तियां किसी देवी-देवता की नहीं बल्कि गांव के पहले शिक्षक भैरव नाथ महतो और उनकी पत्नी की हैं. साथ में उनके घोड़ा की मूर्ति भी स्थापित है. गांव में इन मूर्तियों की रोज पूजा होती है. लोग श्रद्धा और सम्मान के साथ जल और प्रसाद अर्पित करते हैं.
शिक्षक भैरव नाथ महतो का जन्म एक गरीब परिवार में इसी लांदुपडीह गांव में हुआ था. उन्हें बचपन से ही पढ़ाई लिखाई में बहुत रुचि थी. लेकिन गांव में स्कूल नहीं था तो वो गांव से बहुत दूर पढ़ने के लिये जाते थे. उनकी ललक ने उन्हें पढ़ने से नहीं रोका और कई किमी दूर रोजाना पढ़ाई के लिये जाते थे. वहां से पढ़ाई करने के बाद उन्होंने अपने गांव और आसपास के गांवों में शिक्षा की अलख जगाने की कसम खा ली. बिना किसी सरकारी मदद के 1960 में अपने गांव में बरगद के पेड़ के नीचे गांव के बच्चों को पढ़ाना शुरू किया.
इनकी मेहनत और लगन धीरे धीरे रंग लाने लगी इसी स्थान पर पहले प्राथमिक, मध्य और फिर हाई स्कूल के बाद अब प्लस टू का स्कूल बना जिसमें कई छात्र छात्राएं पढ़ाई कर रही हैं.
भैरव नाथ का निधन 2005 में हुआ. तब तक इनके पढ़ाये लगभग 70 शिष्य शिक्षक बने. इसके अलावा 5 ने रेलवे में 3 ने बैंकों में नौकरी पाई. उन्हें लोग आज भी याद करते हैं और स्कूल के बगल में गुरु और गुरुमाता के साथ उनके घोड़े की प्रतिमा स्थापीत कर इस जगह को मंदिर जैसा पूजते हैं.
भैरव नाथ के शिष्य रहे नगेन्द्र नाथ महतो अपने गुरु के बारे बताते हैं कि वो गांव के बच्चों को पकड़ पकड़ कर लाते थे और पेड़ के नीचे पढ़ाते थे और उनके पढ़ाये गये इसी गांव के 72 शिष्य शिक्षक बने. भैरव महतो के शिष्य रहे हिकिम सिंह मुंडा भी शिक्षक हैं इन्होंने बताया कि लोगों मे भैरव नाथ महतो के प्रति श्रद्धा है क्योंकि उन्होंने ही इस गांव में शिक्षा की शुरुवात की थी. उनकी शिक्षा के बदौलत इस गांव में 70 से ज्यादा शिक्षक बने. (रिपोर्ट: अरविंद सिंह)
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