चार साल से ज्यादा हुए जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अनुसंधान की शीर्ष संस्था के रूप में नेशनल रिसर्च फाउंडेशन (एनआरएफ) लॉन्च करने का वादा किया था. यह वादा अब पूरा होने जा रहा है. सरकार संसद के मॉनसून सत्र में चर्चा और पारित कराने के लिए इससे जुड़ा विधेयक तैयार कर रही है. 2019 में भारतीय विज्ञान कांग्रेस के 106वें सत्र में मोदी ने ऐलान किया था कि ‘विश्व गुरु’ के रूप में भारत का अतीत का गौरव बहाल करने की दूरदृष्टि से ऐसी दूरगामी पहल जरूरी है. इसका लक्ष्य भारत को अनुसंधान और नवाचार के क्षेत्र में वैश्विक अगुआ बनाना है. इसमें देरी की वजह कोविड-19 महामारी को बताया जा रहा है.
इसी साल संसद से पारित होने के बाद, एनआरएफ की स्थापना राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) की सिफारिश के अनुरूप वैज्ञानिक अनुसंधान को ‘उच्चस्तरीय रणनीतिक दिशा’ देने के लिए 2023 और 2028 के बीच 50,000 करोड़ रुपए के निवेश से की जाएगी.
एनआरएफ पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीएफ) के तहत अनूठा संस्थान होगा, जिसके लिए पहले पांच साल रिसर्च फंडिंग के 36,000 करोड़ रुपए निजी साझेदारों यानी ज्यादातर उद्योग से आएंगे. यह अनुसंधान और विकास (आरऐंडडी) के बीज बोएगा, उन्हें उगाएगा और बढ़ावा देगा. यह भारत के विश्वविद्यालयों, कॉलेजों, शोध संस्थानों आदि में अनुसंधान और नवाचार की संस्कृति को बढ़ावा देगा. केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह बताते हैं, ”एनआरएफ यह सुनिश्चित करने के लिए है कि वैज्ञानिक अनुसंधान में समान ढंग से धन लगे और ज्यादा निजी भागीदारी आगे आए. हमने यह भी पाया कि वैज्ञानिक अनुसंधान अभी तक सरकारी महकमों और प्रयोगशालाओं, केंद्रीय और राज्य विश्वविद्यालयों के अलग-थलग और बंद कमरों में होते हैं, जिनके बुनियादी ढांचे में भी वैसी एकरूपता नहीं है जैसी भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों में है. वैज्ञानिक अनुसंधान की फंडिंग में भी एकरूपता का अभाव है. विधेयक में इन सब मसलों को हल किया गया है.”
अनुसंधान के लिए मिलने वाले धन का बहुत बड़ा हिस्सा जहां अव्वल शोध संस्थानों को चला जाता है, बमुश्किल 10 फीसद राज्य विश्वविद्यालयों के हाथ लगता है. एनआरएफ इसे दुरुस्त करेगा. यूजीसी के चेयरमैन एम. जगदीश कुमार कहते हैं, ”यह स्वागतयोग्य है क्योंकि इससे उच्च शिक्षा संस्थानों की तरफ से अपने कैंपसों में शोध के इकोसिस्टम को विकसित करने के लिए की जा रही कोशिशों को गति मिलेगी.” विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) कई स्वायत्त शोध निकायों के लिए धन का मुख्य स्रोत बना रहेगा.
जहां सरकार पांच साल के दौरान 14,000 करोड़ रुपए की सहायता मुहैया कर रही है, उम्मीद यह है कि एनआरएफ के वजूद में आने के बाद निजी शोध अनुदान सुचारु ढंग से आएंगे, जिनके इसी अवधि में इस धनराशि से ढाई गुना होने की उम्मीद है.
नीति आयोग और इंस्टीट्यूट फॉर कंपीटिटिवनेस के एक अध्ययन से पता चलता है कि भारत दुनिया में आरऐंडडी पर सबसे कम खर्च करने वाले देशों में है. देश फिलहाल आरऐंडडी पर अपने जीडीपी का 0.7 फीसद खर्च करता है. सकल खर्च 2008 में 0.84 फीसद से घटकर 2018 के अंतिम उपलब्ध आंकड़े तक 0.69 फीसद पर आ गया. यह इसके बावजूद है कि आरऐंडडी पर भारत का खर्च बीते 10 साल में लगातार बढ़ा और 2018-19 में देश का अनुमानित खर्च 1,23,847.71 करोड़ रुपए था. इसके मुकाबले अमेरिका ने अपने जीडीपी का 2.83 फीसद, चीन ने 2.14 फीसद और इज्राएल ने 4.9 फीसद आरऐंडडी पर खर्च किया. दक्षिण कोरिया का खर्च अब करीब 5.0 फीसद है, जिसका पांच में से चार हिस्सा निजी क्षेत्र से आता है.
यूनेस्को की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में प्रति 10 लाख आबादी पर 366 आरऐंडडी कर्मी हैं, जबकि इसके मुकाबले ब्राजील में 1,366, चीन में 2,366 और जर्मनी में 6,995 हैं. आइसलैंड में प्रति 10 लाख पर सबसे ज्यादा 10, 073 हैं. रिपोर्ट बताती है कि भारत में प्रति 10 लाख लोगों पर महज 253 वैज्ञानिक हैं.
एनआरएफ के बनने के बाद भी फंड का आना प्राथमिक चिंता बनी रहेगी. बेंगलूरू स्थित टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ जेनेटिक्स ऐंड सोसाइटी (टीआइजीएस) के डायरेक्टर राकेश के. मिश्र कहते हैं, ”भारत में रिसर्च फंडिंग में भारी सुधार की जरूरत है…निजी फंडिंग और कामकाज तथा संसाधन उगाहने में उद्योग की भागीदारी ही वह असल बदलाव है जिससे फर्क पड़ेगा.”
इस आमूलचूल बदलाव के लिए एनआरएफ को कंपनियों को प्रेरित करना होगा कि वे आरऐंडडी में निवेश करें. टेक्नोलॉजी के लिहाज से उन्नत देशों में निजी क्षेत्र अनुसंधान और विकास में उछाल की अगुआई करता है. इज्राएल में निजी संस्थाएं 88 फीसद जितना बड़ा योगदान देती हैं, जबकि भारत में यह महज 35 फीसद है. पुणे स्थित सेंटर फॉर टेक्नोलॉजी, इनोवेशन ऐंड इकोनॉमिक रिसर्च के विश्लेषण से पता चलता है कि 2021 में भारत की शीर्ष 10 सबसे ज्यादा लाभप्रद गैर-वित्तीय फर्मों ने आरऐंडडी पर औसतन महज 0.3 फीसद खर्च किया, जिसमें 1.4 फीसद के साथ टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज सबसे आगे थी.
एनआरएफ को नीतिगत ढांचा बनाने और नियामकीय प्रक्रियाओं पर काम करने की जिम्मेदारी भी सौंपी गई है. फिर वजूद की चुनौतियों से भी पार पाना होगा. पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के डॉ. के. श्रीनाथ रेड्डी कहते हैं, ”प्रमाण से पुष्ट, संदर्भ के लिहाज से प्रासंगिक, संसाधनों का अभीष्टतम इस्तेमाल करने वाले, सांस्कृतिक रूप से सुसंगत और समानता को बढ़ावा देने वाले समाधान विकसित करने के लिए कई व्यवस्थाओं को साथ मिलकर काम करना होगा. उन समाधानों को विभिन्न क्षेत्रों में असरदार ढंग से जमीन पर उतारने के लिए समाज के कई तबकों की जरूरत होगी.” वे बताते हैं कि प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा का कायापलट करना जैवचिकित्सा विज्ञानों के अलावा सामाजिक और व्यवहार विज्ञानों, प्रबंधन, डिजिटल टेक्नोलॉजी और स्वास्थ्य अर्थशास्त्र को आपसे में जोड़ने की मांग करता है.
हैदराबाद स्थित एल.वी. प्रसाद आई इंस्टीट्यूट के संस्थापक चेयरमैन डॉ. गुल्लापल्ली एन. राव कहते हैं, ”बीते तीन दशकों में भारत में आंतरिक संसाधनों के अलावा लोगों, उद्योग और फाउंडेशनों से मिले धन ने आंखों की देखभाल के उन्नत, बहु-विषयी अनुसंधान को आगे बढ़ाने में मदद की, लेकिन संसाधनों के आवंटन की संस्कृति अभी विकसित हो रही है.” वे स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के एक अध्ययन का हवाला देते हैं, जिससे खुलासा हुआ कि दुनिया के शीर्ष दो फीसद वैज्ञानिकों में भारत के महज नौ हैं.
अलबत्ता शोध और नवाचार पर ध्यान देने का नतीजा यह जरूर हुआ कि पेटेंट की संख्या एक दशक पहले सालाना 4,000 से बढ़कर 30,000 हो गई है. इसकी वजह नीतिगत समर्थन और पेटेंट जारी करने की प्रक्रिया को सरल किया जाना है. इसी तरह जारी किए गए ट्रेडमार्कों की संख्या एक दशक में 70,000 से बढ़कर 2,50,000 हो गई है. मगर आरऐंडडी का जीवंत इकोसिस्टम बनाने के लिए एनआरएफ को धन का ज्यादा अबाध प्रवाह सुनिश्चित करने की कोशिश करनी होगी.
कार्य योजना
एनआरएफ एक अद्वितीय पीपीपी इकाई होगी, जो उद्योग, शिक्षा और सरकारी विभागों तथा शोध संस्थानों के बीच सहयोग स्थापित करेगी
इसमें 2023-28 के दौरान 50,000 करोड़ रुपए का निवेश होगा. उसमें से 36,000 करोड़ रुपए निजी साझेदारों से आएंगे
भारत अपने जीडीपी का 0.7% आरऐंडडी पर खर्च करता है, जबकि अमेरिका 2.83%, चीन 2.14% और इज्राएल 4.9% खर्च करता है
विशेषज्ञों के अनुसार, कई डिसिप्लिन को एक साथ काम करना होगा. देश में संसाधनों के आवंटन की संस्कृति अभी विकसित ही हो रही है
भारत में नवाचार
40वां स्थान 132 देशों के बीच, डब्ल्यूआइपीओ ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स 2022 में
46वां स्थान 158 देशों के बीच, यूएनसीटीएडी टेक्नोलॉजी ऐंड इनोवेशन रिपोर्ट 2023 में
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