मुंबई34 मिनट पहले
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रिपोर्ट के मुताबिक, बिजनेसमैन मुकेश अंबानी, आनंद महिंद्रा और सुनील मित्तल जल्दी ही रिटायरमेंट ले सकते हैं।
भारत के कई कारोबारी दिग्गज आने वाले सालों में कारोबारी जिम्मेदारी अपने बच्चों को देकर रिटायर हो सकते हैं। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक, मुकेश अंबानी (66) 2029 तक अपने एक या बाकी बच्चों के हाथों में बिजनेस का एग्जीक्यूटिव कंट्रोल सौंप देंगे।
यही नहीं, एलएंडटी के एएम नायक (81), एचडीएफसी के दीपक पारेख (78) और कोटक महिंद्रा बैंक के उदय कोटक (64) भी रिटायर हो सकते हैं। ये सभी रतन टाटा (85), आदि गोदरेज (81), अजीम प्रेमजी (78) और शिव नाडर (78) के रिटायरमेंट क्लब में शामिल हो जाएंगे। इन दिग्गजों को रिटायर हुए 10 साल से ज्यादा वक्त हो गया है।
वो कारोबारी दिग्गज, जो रिटायरमेंट प्लान कर रहे
रिपोर्ट के मुताबिक, डॉ. प्रताप रेड्डी (रेड्डीज लेबोरेट्रीज), आरसी भार्गव, नुस्ली वाडिया (मफतलाल), बाबा कल्याणी, हर्ष मारीवाला, वेणु श्रीनिवासन, किरण मजूमदार-शॉ, पवन मुंजाल, अनिल अग्रवाल, आनंद महिंद्रा, नंदन नीलेकणि, अजय पीरामल, दिलीप संघवी और सुनील मित्तल या तो पूरी तरह रिटायर हो जाएंगे या फिर प्रबंधन जिम्मदारियों में कटौती करेंगे। इनमें रेड्डी 91 और भार्गव 89 साल के हैं, बाकी सब 60-70 के दशक में हैं।
कारोबारी परिवार के उत्तराधिकारियों को साबित करना होगा
कई बिजनेस लीडर्स ने लार्जर दैन लाइफ जी है। कई दिग्गज अपने बिजनेस के संस्थापक रहे और कड़ी मेहनत से उसे खड़ा किया। भले ही उनके पास संसाधनों की कमी रही, लेकिन उदारवाद के बाद के दौर में वे उभरकर सामने आए। उनके उत्तराधिकारियों को एक बनी बनाई कंपनी मिलेगी, लेकिन दुनिया की पांचवीं अर्थव्यवस्था बन चुके भारत में उन्हें खासी प्रतिस्पर्धा देखने को मिलेगी।
पुराने कारोबारी दिग्गजों ने कई मुश्किलें झेलीं, मसलन एशियन क्राइसिस, डॉट कॉम बबल, ग्लोबलाइजेशन, 2008 का वित्तीय संकट और टेक्नोलॉजी में आया जबरदस्त बूम। कुछ को छोड़ दें तो कारोबारी परिवारों के बच्चों को काबिलियत साबित करनी होगी।
भारतीय कंपनियों के लिए उत्तराधिकारी तय करने की राह मुश्किल होगी
एक्सपर्ट कहते हैं कि यह दशक भारत की जानी-मानी कंपनियों के लीडरशिप में जेनरेशन चेंज के लिए जाना जाएगा। लेकिन, यह आसान नहीं होगा। इसकी झलक पिछले कुछ घटनाक्रमों में दिखी है। जैसे टाटा समूह में, नेतृत्व करने के लिए गैर-टाटा का चयन सफल नहीं रहा।
वहीं, इंफोसिस में बाहरी लीडर का प्रोजेक्शन विफल रहा, जिससे बोर्ड में तख्तापलट हुआ और नीलेकणि की वापसी हुई। महिंद्रा ग्रुप में एग्जीक्यूटिव लीडरशिप में बाहरी व्यक्ति को लाने को धीरे-धीरे और उद्देश्यपूर्ण तरीके से किया गया।
एशियन पेंट्स, मैरिको और गोदरेज में एग्जीक्यूटिव पदों पर परिवार का व्यक्ति और बाहरी प्रोफेशनल का मिक्स रहा। बजाज, अपोलो और भारत फोर्स में दूसरी और तीसरी पीढ़ी के परिवार के सदस्य प्रबंधन की कमान संभाले हुए हैं। मीडिया रिपोर्ट्स से संकेत मिलता है कि सिपला जैसी अन्य कंपनियों में उत्तराधिकारी बाहर जाना चाह सकते हैं।
सायरस मिस्त्री 2012 से 2016 तक टाटा ग्रुप के छठे चेयरमैन रहे थे।
मुकेश अंबानी क्यों संभलकर जिम्मेदारियां दे रहे
मुकेश अंबानी ने रिलायंस इंडस्ट्रीज के चेयरमैन और एमडी के पद पर रहते हुए तीन दशक में कंपनी को 5,500 करोड़ रुपए से 74,430 करोड़ रुपए की कंपनी बना दिया है। माना जाता है कि रिलायंस हमेशा प्रोजेक्ट मोड में रहती है।
हाल ही में रिलायंस ने न्यू एनर्जी बिजनेस को ईंधन देकर उसकी रफ्तार बढ़ाने की तैयारी की है, साथ ही चीन को पीछे छोड़ने की योजना बनाई है। ऐसे में मुकेश अंबानी के पद पर रहे बिना यह काम मुश्किल लग रहा है। विश्लेषक मानते हैं कि दुनियाभर में उत्तराधिकार सौंपने के नतीजों की भविष्यवाणी मुश्किल है। उत्तराधिकारी उम्मीद पर खरे उतरेंगे, यह दावा करना मुश्किल है।
मुकेश अंबानी के लिए उत्तराधिकार के संभावित नुकसान बहुत वास्तविक हैं। उनके पिता धीरूभाई ने कोई वसीयत नहीं छोड़ी थी और उनका निधन हो गया। इसके बाद मुकेश का अपने भाई अनिल के साथ संपत्ति विवाद हुआ। शायद यही एक वजह है कि वे एक स्पष्ट और व्यवस्थित उत्तराधिकार योजना तैयार करने की इतनी कोशिश कर रहे हैं।
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