जहां देश में जनता के द्वारा चुने हुए जनप्रतिनिधियों से भले लाल बत्ती हटाने को कहे हुए वर्षों बीत गए लेकिन दिल, दिमाग से वीआईपी सोच वाली लालबत्ती की अकड़ नहीं हट पा रही है. आप कभी एयरपोर्ट जाते हैं तो देखते हैं कि पानी की बोतल से लेकर चाय कॉपी तक का बाहर के मुकाबले ज्यादा पैसा देते हैं. पार्किंग फीस देते हैं. विमान में जहां सीट मिल पाती है, वहीं ले पाते हैं. हर चीज का पैसा यात्रा के दौरान एयरपोर्ट से लेकर विमान तक में भरते हैं.
लेकिन हमारे देश के सांसदों को आज भी एयरपोर्ट से प्लेन तक वीआईपी विशेष अधिकार मिलता है. जिसमें रत्ती भर कमी हो जाए तो सांसद नाराज हो गए. शिकायत कर दी. अब कई अधिकारियों को संसद की विशेषाधिकार कमेटी ने समन देकर पेश होने को कह दिया.
पीएम मोदी ने कही थी ये बात
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा भी था कि मेरी बिरादरी के लोग हैं, जो अपने आपको बड़ा वीआईपी मानते हैं, हवाई अड्डे को आपका जवान रोककर पूछता है तो उनका पारा बहुत तेज चढ़ता है. आपको अपमानित कर देते हैं. यहां तक कह देते हैं कि आपको देख लूंगा. पीएम ने कहा कि वीआईपी कल्चर से जिनता हम बच सकते हैं, हमको बचना चाहिए.
वीआईपी कल्चर के खिलाफ प्रधानमंत्री मोदी ने वर्षों पहले दी थी. वो बात देश के की संसद में बैठने वाले तमाम दलों के सांसद भूल गए हैं? जिन्हें लगता है कि एयरपोर्ट से जब सांसद यात्रा करते हैं तो उनको विशेषाधिकार के तहत मिलने वाली वीआईपी सुविधाओं का आनंद उन्हें नहीं उठाने दिया जा रहा है.
सांसदों की शिकायत
देश के कई सांसद नाराज हैं कि उन्हें एयरपोर्ट पर प्रोटोकॉल के तहत सुविधा नहीं मिल रही है. देश के कई सांसद शिकायत किए हैं कि उनके साथ विशेष शिष्टाचार का पालन एयरपोर्ट पर नहीं हो रहा है. ऐसे में आइए पहले जानते हैं कि कौन से प्रोटोकॉल और कर्टसी यानी शिष्टाचार की बातें एयरपोर्ट पर सांसदों के लिए तय हुई हैं?
ऐसे सफर करता है आम आदमी
आम आदमी को प्लेन में सीट बुकिंग से लेकर तमाम चीजों के लिए कोई विशेष सुविधा नहीं मिलती. आम आदमी एयरपोर्ट पर अपनी गाड़ी या टैक्सी से जाता है तो पार्किंग में खड़ी करता है. तय नियमों का पालन करता है. आम आदमी एयरपोर्ट पर एक बोतल पानी से लेकर चाय कॉफी तक के लिए महंगी रकम भरता है. तय नियमों के मुताबिक जनता एयरपोर्ट पर चेक इन करती है. सिक्योरिटी चेक से गुजरती है. लेकिन देश के सांसदों को एयरपोर्ट पर वीआईपी सुविधाओं का पूरा पुलिंदा मिलता है.
सांसदों को एयरपोर्ट्स पर मिलती हैं ये सुविधाएं…
सांसदों के लिए प्रोटोकॉल्स के तहत, सांसदों को देशभर के सभी घरेलू और अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट पर रिजर्व लाउंज की सुविधा मिलती है. हमारे देश के सांसदों को वीआईपी सुविधा के तहत एयरपोर्ट्स पर चाय, कॉफी या पानी मुफ्त में दिए जाने को पहले से कहा गया है. इसके अलावा सांसदों को जारी किए संसद भवन कार पार्क पास के आधार पर एयरपोर्ट अथॉरिटी और अन्य एयरपोर्ट ऑपरेटर्स की तरफ से वीआईपी कार पार्किंग की सुविधा मिलनी चाहिए. यही नहीं गाइडलाइंस में तो ये तक कहा जा चुका है कि सांसदों को उपलब्धता के आधार पर उनकी पसंद की सीट तक फ्लाइट में मिलनी चाहिए.
सांसद अगर सीट हवाई जहाज की बुक कराएंगे तो उन्हें आगे की लाइन में सीट देने की कोशिश कंपनियां करें, ये तक वीआईपी सुविधा के तहत ही कहा जा चुका है और ऊपर से ये भी कि सभी एयरपोर्ट्स को एक Aviation Protocol Officer नियुक्त करना चाहिए, जो सांसदों को मिलने वाली सभी सुविधाओं का ध्यान रखे.
सुविधाएं न मिलने से नाराज हुए माननीय सांसद!
अब यही सुविधाएं जब सांसदों को एयरपोर्ट पर नहीं मिल पाईं तो उन्होंने संसद की विशेषाधिकार कमेटी से शिकायत की. जिसके बाद पहले सिक्योरिटी एजेंसी सीआईएसएफ से लेकर सिविल एविएशन के बड़े अधिकारियों को प्रीवलेज कमेटी ने समन देकर बुला लिया. बल्कि कई निजी एयरलाइंस के अधिकारियों को बुलाने के बाद अब इंडिगो के एमडी को 30 अगस्त को पेश होने को कहा है. ये सुविधाएं सांसदों के नाम सुनकर हवाई जहाज में महंगा किराया देकर नियमों का पालन करने वाला आम आदमी पूछता है कि जनता और सांसद के बीच इतना फर्क क्यों है?
इन सुविधाओं पर लगाम क्यों नहीं?
आम आदमी पूछ रहा है कि अगर लालबत्ती खत्म देश में हो सकती है तो फिर ये बाकी की वीआईपी सुविधाएं क्यों नहीं? भारत में जनता संप्रभु है. लेकिन पांच साल में एक बार जनता की उंगली से ताकत लेकर लंबे वक्त तक वीआईपी का सुख सांसद भोगते हैं. जरूरी है कि ये फर्क भी खत्म हो.
एक सांसद को मिलते हैं 34 फ्री टिकट
आपको बताते चलें कि हमारे देश के सांसद को हर साल 34 टिकट मुफ्त यात्रा के दिए जाते हैं. एक साल में 34 यात्रा सांसद ना कर पाएं तो मुफ्त वाला टिकट अगले साल और जुड़ता जाता है. ये मुफ्त यात्रा तो वीआईपी सुविधाओं के अतिरिक्त है. अब प्रोटोकॉल के नाम पर खुद के लिए वीआईपी ट्रीटमेंट चाहने वाले हर माननीय को एक किस्सा पढ़ना चाहिए…
यह किस्सा जरूर पढ़ना चाहिए…
8 जुलाई की बात है. इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज पत्नी के साथ दिल्ली से प्रयागराज आ रहे थे. ट्रेन तीन घंटे लेट हुई, जज नाराज हो गए कि बताने पर भी टीटी उनसे मिलने नहीं पहुंचे. जज साहब की नाराजगी इस बात पर भी सामने आई कि बार बार कॉल करने पर भी पैंट्री कर्मचारी ने ध्यान नहीं दिया. फिर क्या था, हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार ने रेलवे के जीएम को चिट्ठी लिखकर जज साहब को हुई असुविधा पर सफाई मांग ली. जज साहब के प्रोटोकॉल में चूक पर नाराजगी की चिट्ठी वायरल हुई.
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिफ डी वाई चंद्रचूड़ ने देश के हर जज को नाराजगी जताते हुए नसीहत दी. देश के मुख्य न्यायाधीश ने कहा प्रोटोकॉल किसी का विशेषाधिकार नहीं है. सबक एक को और सीख सबको मिलनी चाहिए. ऐसी हर वीआईपी सुविधाओं को समापन हो, जो जनता और नेता के बीच फर्क पैदा करती है. यही इस किस्से की मुख्य लाइन है.
ये वीआईपी कल्चर नहीं कुप्रथा है!
हमारे देश में जिसे वीआईपी कल्चर कहा जाता है. दरअसल वो कल्चर नहीं कुप्रथा है, जिसे खत्म करने के लिए किसी क्रांतिकारी के जन्म का इंतजार नहीं करना. बस फैसला लेना है. लेकिन फैसले नहीं होते तो कुप्रथा जारी रहती है. जैसे बिहार में जनवरी की बात है. मुख्यमंत्री एक यात्रा पर निकले थे. देर ना हो जाए इसलिए दावा है कि ट्रेन तक को पंद्रह मिनट रुकवाकर क्रॉसिंग से नीतीश कुमार के काफिले को निकलवाया गया. सवाल हुआ तो सीएम बोले- अरे हमको पता नहीं.
आज भी ऐसी ही एक कहानी का वीडियो आया है. दावा है कि मरीज ले जाती एंबुलेंस को किनारे रोक दिया गया ताकि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का काफिला गुजर सके.
एंबुलेंस रोककर निकाला गया सीएम का काफिला
आम आदमी की बात करते हुए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पूरे देश में विपक्ष को एक करने का दौरा करते हैं. लेकिन क्या नीतीश कुमार के राज में ही मुख्यमंत्री के काफिले के लिए आम आदमी को रुलाया जाता है? इस एंबुलेंस वैन की तस्वीर भी सामने आई, जिसमें मोबाइल से बनाए जाते वीडियो में भीतर एक मरीज नजर आती है. उसके साथ हरे रंग के कपड़े में बैठी परिजन महिला रोती बिलखती दिखती हैं. उनके साथ सहमे हुए से बैठा एक शख्श दिखता है. लेकिन सवाल है कि एंबुलेंस रुकी हुई क्यों है?
दावा है कि पटना के मरीन ड्राइव इलाके में नीतीश कुमार का काफिला बेरोक जाए. कहीं कोई बाधा ना आए, इसलिए एंबुलेंस तक को पुलिसकर्मियों ने रोक दिया. यें एंबुलेंस कब रोकी गई, कहां रोकी गई. इसका जवाब जानने से पहले यह जान लीजिए कि यहां एक नहीं बल्कि दो-दो एंबुलेंस मुख्यमंत्री के काफिले के लिए पुलिसवालों ने रोक रखी थीं.
सीएम तो चले गए लेकिन ये सवाल छोड़ गए
जब एंबुलेंस वाले ने पुलिसकर्मी से रिक्वेस्ट की तो उसे आगे अधिकारियों के पास भेज दिया गया. लेकिन अधिकारी ने दो एंबुलेंस रोक दीं. एक एबुलेंस वैन वाली है तो दूसरी एंबुलेंस बड़ी वाली. पटना में मरीज के साथ वाली दो-दो एंबुलेंस रोक दी गईं. ऐसे में सवाल है कि क्या मरीज से बड़े मुख्यमंत्री हैं? क्या जिंदगी से बड़ा सीएम का दौरा है? क्या स्वास्थ्य से बड़ा सीएम का काफिला है?
लालू का वीडियो भी आया सामने
जब नीतीश कुमार के कााफिले के लिए एंबुलेंस को रोक देने वाला वीडियो आया, तभी आज लालू प्रसाद यादव को वीआईपी ट्रीटमेंट देने में वर्दी की मर्यादा भूलने वाले डीएसपी का वीडियो भी सामने आया. जहां लालू प्रसाद यादव के साथ उनका परिवार होता है, निजी सहायक और तमाम कार्यकर्ता भी होते हैं. लेकिन लालू यादव को बारिश से बचाने के लिए डीएसपी ही छाता हाथ में लेकर चलते रहे. इसके बाद भी लगातार सवाल उठ रहे हैं.
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