सऊदी अरब द्वारा साल के अंत तक उत्पादन में कटौती की घोषणा के बाद मंगलवार को कच्चे तेल की कीमतों में नाटकीय रूप से उछाल आया। ब्रेंट क्रूड की कीमतें 90 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर पहुंच गईं। आपको बता दें कि आधिकारिक सऊदी प्रेस एजेंसी के अनुसार, सऊदी अरब इस साल के अंत तक अपने स्वैच्छिक 10 लाख बीपीडी कच्चे तेल उत्पादन में कटौती को बढ़ाएगा। पिछले महीने में ब्रेंट क्रूड 6 डॉलर प्रति बैरल बढ़ गया है। ऊर्जा विशेषज्ञों का कहना है कि कच्चे तेल की कीमत में एक बार फिर उछाल आने से भारत को झटका लगेगा। जहां एक ओर पेट्रोल-डीजल सस्ता होने की उम्मीद धूमिल होगी। वहीं, दूसरी ओर महंगाई का झटका लगेगा।
भारत पर कैसे होगा असर
जानकारों का कहना है कि भारत अपनी जरूरत का करीब 85 फीसदी तेल विदेशों से आयात करता है। कच्चा तेल महंगा होने से भारत का आयात बिल बढ़ेगा जो चालू खाते का घाटा बढ़ेगा। इससे पेट्रोल और डीजल की बढ़ी कीमत से आम जनता को राहत नहीं मिलेगी। यह महंगाई बढ़ाने का काम करेगा। कच्चा तेल महंगा होने से पेंट, पेट्रोलियम प्रोडक्ट समेत कई जरूरी सामान का आयात करना महंगा हो जाएगा। यह भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए भी ठीक नहीं होगा। अगर कच्चे तेल की कीमत और बढ़ती है तो सरकार को एक्साइज ड्यूटी घटानी होगी। इसका मतलब होगा कि सरकार को फिर से अरबों रुपए का टैक्स घाटा होगा। कुल मिलाकर आम जनता पर महंगाई का बोझ बढ़ेगा। पहले की खुदरा महंगाई सात फीसदी के पार निकल चुकी है। ऐसे में आरबीआई द्वारा महंगाई कम करने की कोशिश और मुश्किल हो जाएगी।
रूस से भी राहत मिलने की उम्मीद नहीं
सऊदी अरब द्वारा उत्पादन घटाने के ऐलान के बाद रूस ने कहा कि वह प्रति दिन 3,00,000 बैरल (बीपीडी) के निर्यात कटौती को बढ़ाएगा। रिपोर्ट में कहा गया है कि इस बीच रूसी समुद्री कच्चे तेल और उत्पाद निर्यात सितंबर 2022 के बाद से अपने सबसे निचले स्तर पर गिर गया, क्योंकि गर्मियों में मजबूत घरेलू मांग ने बाहरी बाजारों के लिए उपलब्ध मात्रा को सीमित रखा। तेल मूल्य रिपोर्ट में कहा गया है, जुलाई-अगस्त में निर्यात में 500,000 बीपीडी की कटौती करने के अपने वादे को पूरा करते हुए भारत में रूसी प्रवाह 30 प्रतिशत घटकर 15 लाख बीपीडी हो गया, जैसे कि यूराल जुलाई की शुरुआत से ही तेल मूल्य सीमा 60 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर कारोबार कर रहा है। यानी रूस से भी राहत मिलने की उम्मीद नहीं है।
इनपुट: आईएएनएस
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