इंसान जिद पर आ जाए तो क्या नहीं कर सकता. हरदोई के एक शख्स की जिद ने माउंटेन मैन दशरथ मांझी की यादें ताजा करा दी हैं. दशरथ मांझी ने जिद के चलते पहाड़ काटकर रास्ता बना दिया था. वहीं हरदोई के एक फकीर इरफान उर्फ पप्पू बाबा ने नाम के शख्स ने मिट्टी के ऊंचे टीले को ऊपर से लेकर जमीन के अंदर अपने हाथों से मिट्टी काटकर अपना दो मंजिला महल तैयार किया है.
जमीन के अंदर बने आशियाने में 11 कमरे, इबादत के लिए मस्जिद और मक्का मदीना का स्वरूप भी है. केवल खुरपी फावड़ा का इस्तेमाल कर दीवारों पर नक्काशी की है और तमाम चित्रों के साथ-साथ दीवार पर तिरंगा उकेरा है. इरफान को यह महल बनाने में 12 साल का वक्त लगा. जमीन के अंदर दो मंजिला महल बनाने वाले फकीर की मेहनत और कारीगरी को लेकर लोग आश्चर्यचकित हैं. तमाम लोग इस दो मंजिला आशियाने को देखने के लिए आते हैं.
फकीर इरफान अहमद उर्फ पप्पू बाबा उत्तर प्रदेश के हरदोई के शाहाबाद कस्बे के मोहल्ला खेड़ा बीबीजई में रहते हैं. वे अपनी मेहनत और कारीगरी को लेकर चर्चा में हैं. दरअसल, इरफान अहमद उर्फ पप्पू बाबा ने जमीन के अंदर दो मंजिला आशियाना तैयार किया है. इसमें इरफान ने पहली और दूसरी मंजिल पर करीब 11 कमरे, इबादत के लिए मस्जिद व मक्का मदीना का स्वरूप अपने हाथों से तराश कर तैयार किया है. इरफान अहमद का ये महल पिलर पर टिका है.
कमरे और मस्जिद तक सीढ़ियों से होकर जाना पड़ता है
कमरों और इबादतगाह के लिए सीढ़ियों से होकर जाना पड़ता है, जिन्हें कस्सी, खुरपी और फावड़ा का प्रयोग कर इरफान ने हाथों से तैयार किया है. आशियाने की दीवारों पर तिरंगे की आकृतियां हैं और चित्रों को उकेरकर नक्काशी के जरिए इसे बेहद खूबसूरत बनाया है. अपने हाथों से मिट्टी के ऊंचे टीले को खोदकर इरफान ने इसे महल का रूप दिया है.
साल 2011 में की थी यह अनोखा मकान बनाने की शुरूआत
इरफान बताते हैं कि इस मकान को बनाने में 12 साल का वक्त लगा. साल 2011 में उन्होंने इसे बनाने की शुरुआत की थी. टीले पर उनकी पैतृक जमीन थी, जिसका कुछ हिस्सा उन्होंने खेती के लिए उपयोग में लिया, जबकि कुछ हिस्से में उन्होंने आशियाना बनाने के लिए प्रयोग किया. करीब 12 साल की मेहनत के बाद कस्सी, फावड़ा और खुरपी के जरिए मिट्टी के टीले की खुदाई कर अंडरग्राउंड दो मंजिला आशियाना बनाया.
खुरपी से की नक्काशी और उकेरीं आकृतियां
इरफान ने टीले के अंदर खुदाई कर पिलर तैयार किया और धीरे-धीरे मिट्टी काटकर कमरों के साथ इबादतगाह तैयार की. कस्सी और खुरपी के जरिए पूरी इमारत में नक्काशी और आकृतियां उकेरीं, जिससे यह खूबसूरत लगे.
इरफान अहमद के मुताबिक, पहले वह दिल्ली में रहकर सिलाई करते थे. फिर वह अपने घर शाहाबाद आए और सभासद का चुनाव लड़ा. चुनाव में उन्हें जीत हासिल नहीं हुई, वह निराश हो गए. इसके बाद उन्होंने फकीरी अख्तियार कर ली और फिर अल्लाह की इबादत में लग गए.
अंडरग्राउंड मकान में ही रहते हैं इरफान
खेड़ा यानि टीले पर अपनी पैतृक जमीन में इरफान ने अपना आशियाना तैयार किया है, इसी में वह रहते हैं और इबादत करते हैं. वह अविवाहित हैं. खाने पीने के लिए वह पड़ोस मे अपने पैतृक घर चले जाते हैं और आ जाते हैं. दिन और रात को इसी मकान में रहते हैं.
इरफान रोजाना 4 से 5 घंटे अपने इस आशियाने को सजाने संवारने और विस्तृत रूप देने में जुटे रहते हैं. उनका कहना है कि उन्हें इसकी प्रेरणा उन्हें कहीं से नहीं मिली, वो हताश हुए तो मन में आया तो आशियाना बनाने में जुट गए और इसे तैयार भी कर लिया. अभी भी कुछ काम बाकी है, जिसे पूरा कर रहे हैं.
अंडरग्राउंड मकान को पप्पू बाबा की गुफा के नाम से भी जानते हैं लोग
इरफान अहमद उर्फ पप्पू बाबा के इस महल को लोग पप्पू बाबा की गुफा के नाम से भी जानते हैं, क्योंकि इस महल में तमाम सीढ़ियां हैं और गुफानुमा ही इसे तैयार भी किया गया है. लिहाजा इसे लोग पप्पू बाबा का महल और पप्पू बाबा की गुफा कहते हैं. पप्पू बाबा के इस महल में कमरे, इबादतगाह और दीवारों पर उकेरी गई खूबसूरत नक्काशी और आकृतियां देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं.
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