बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने आज सोमवार को कहा कि वो इंडिया गठबंधन का संयोजक नहीं बनना चाहते.उनके इस बयान के बाद आरजेडी और जेडीयू के राजनीतिक गलियारों में उनके बयान का मकसद निकालने की कोशिश की जा रही है. दरअसल पिछले दिनों आरजेडी के सुप्रीमो लालू यादव ने इंडिया गठबंधन के कई कन्वेनर बनाए जाने की बात कहकर राजनीतिक हलचल बढ़ा दी थी. 2 दिन के अंतराल में ही लालू यादव ने यह कहकर कि प्रदेश की जनता तेजस्वी को सीएम के रूप में देखना चाहती है और सनसनी बढा दी . लालू के इन दोनों बयानों को नीतीश कुमार पर अप्रत्यक्ष हमला माना गया था. उस दिन से ही राजनीतिक गलियारों में नीतीश कुमार के बयान का इंतजार किया जा रहा था.
नीतीश कुमार राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी हैं. उनकी बातों को डिकोड करना इतना आसान नहीं है. इसके लिए उनकी राजनीतिक यात्रा को समझना जरूरी हो जाता है.इसलिए आज के बयान का मतलब समझने के लिए उनके कुछ पुराने बयानों पर गौर करना चाहिए. नीतीश कुमार ने अपने राजनीतिक जीवन में जो कहा वो कभी किया नहीं और जो किया उसे कभी कहा नहीं. बिहार विधानसभा चुनावों के बाद जब जेडीयू की कम सीटें आईं तो नीतीश कुमार ने कहा कि उन्हें सीएम नहीं बनना है. फिर बाद में सीएम बन गए. विधानसभा चुनावों के दौरान ही कहा था कि ये उनका अंतिम चुनाव है. पर इंडिया गठबंधन की तैयारी ये बताती है कि अभी उन्हें बहुत राजनीति करनी है. 2014 के लोकसभा चुनावों में हारने पर जीतन राम मांझी को सीएम बना दिए और 6 महीने में ही फिर दुबारा सीएम बन गए.इसलिए नीतीश कुमार के आज के बयान को समझना इतना आसान नहीं है. उनके इस बयान के पीछे क्या कोई उनकी मजबूरी है या उनकी सोची समझी रणनीति है ? आइये समझने की कोशिश करते हैं.
लालू की बात का काउंटर
तो क्या नीतीश कुमार का यह दांव लालू यादव पर दबाव बनाने के लिए है. मुझे कन्वेनर नहीं बनना है बोलकर नीतीश कुमार ने लालू को जवाब दे दिया है. मतलब सीधा है कि कन्वेनर नहीं बनूंगा तो सीएम बना रहूंगा. और अगर नीतीश सीएम बने रहेंगे तो तेजस्वी को सीएम बनने का मौका नहीं मिलने वाला है. तेजस्वी अब 2025 के बाद ही सोचें सीएम बनने की बात. दरअसल लालू यादव ने जिस तरह पिछले दिनों पब्लिकली नीतीश कुमार को अच्छे न लगने वाले बयान दिए हैं यह उसका काउंटर है. लालू यादव ने पिछले दिनों बोल दिया था कि बिहार की जनता चाहती है कि तेजस्वी सीएम बने. जाहिर है कि राजनीति में नीतीश कुमार अपने जीवन भर की कमाई तेजस्वी के लिए यूं ही कुर्बान करने वाले नहीं है.
बिहार को लेकर बीजेपी की महत्वाकांक्षा नहीं बढ़ती तो किसी भी कीमत पर नीतीश कुमार बीजेपी का साथ छोड़कर आरेजेडी के साथ नहीं आते.सीएम को नजदीक से जानने वाले यह अच्छी तरह से जानते हैं लालू यादव उनके दोस्त से अधिक प्रतिस्पर्धी रहे हैं. निश्चित ही नीतीश के खुद को संयोजक न बनने वाले बयान से लालू के माथे पर तनाव के निशान आ गए होंगे.नीतीश ने यह बात कहते हुए कहीं से भी यह नहीं बताया कि लालू सही बोल रहे थे. नीतीश कुमार ने कहा कि मेरी इच्छा बस सबको साथ लाने की है. उनके कहने के अंदाज में एक तल्खी भी नजर आ रही थी. हालांकि तेजस्वी के साथ होने के चलते वो गुबार ठीक से नहीं निकाल सके.
सोची समझी रणनीति
कहा जाता है कि जेडीयू और आरजेडी के बीच महागठबंधन बनने के समय एक डील हुई थी जो 4 महीने के लिए ही थी.अब वो समय बीत चुका है इसलिए दोनों खेल रहे हैं. आरजेडी की पूरी रणनीति है कि लोकसभा चुनाव तक जेडीयू का साथ नहीं छोड़ना है . आरेजडी के स अभी लोकसभा का कोई सदस्य नहीं है. लालू को पता है कि इस बार भी अगर अकेले ही चुनाव लड़ते हैं लोकसभा सीट मुश्किल ही है. अगर नीतीश कुमार के साथ रह गए तो कम से कम कुछ सीट तो मिल ही जाएगा.
इसी तरह नीतीश भी यही सोच रहे हैं. अभी नीतीश के पास लोकसभा में 16 सीट हैं. जाहिर है कि जेडीयू इससे ज्यादा ही मांग करेगी. कम से कम 20 या 22 तो तय है. इस कारण नीतीश कन्वेनर बनने की जिद छोड़ सकते हैं कुछ समय के लिए.नीतीश जानते हैं कि लोकसभा में अगर अधिक सीटें रहती है तो बाद में खेला कर लेंगे. पत्रकार विनोद शर्मा कहते हैं कि महागंठबंधन के अंदर कांग्रेस और आरेजेडी का एक क्लोज एलायंस है. दोनों एक ही जुबान बोलते हैं. दूसरी ओर इंडिया गठबंधन के अंदर कांग्रेस का काउंटर एलायंस भी बन रहा है. उसमें आम आदमी पार्टी और टीएमसी आदि पार्टियां हैं.आम आदमी पार्टी बिहार और छत्तीसगढ़ में चुनाव लड़ने की जो बात कर रही है वो उसी रणनीति का हिस्सा हो सकता है.
कांग्रेस 2 राज्यों में कम से कम विक्ट्री स्मेल कर रही है इसलिए उनके नेताओं के बात करने का अंदाज बदल गया है. कहा जा रहा है कि अब कांग्रेस चाहती है कि संयोजक उसकी पार्टी का ही बने. सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस ने इसके लिए 2 लोगों के नाम फाइनल भी कर लिया है.और चूंकि कांग्रेस और आरजेडी किसी भी मुद्दे पर एक साथ ही रहने वाले हैं इसलिए नीतीश चाह कर भी कुछ नहीं कर पाएंगे. शायद इसी के चलते खुद को कन्वेनर के लिए ड्रॉप करना उनकी सोची समझी रणनीति हो सकती है.
मजबूरी: क्या कुमार के लिए कोई रास्ता नहीं बचा ?
दरअसल नीतीश कुमार के लिए आगे कुंआ और पीछे खाई वाली स्थिति उत्पन्न हो गई है.वो जानते हैं कि लालू यादव ने पिछले दिनों जो बयान दिए हैं वो बिल्कुल सही हैं. लालू यादव कभी भी नीतीश कुमार को अपने से ऊपर कद वाला नेता बनाना पसंद नहीं करेंगे. दूसरे तेजस्वी को प्रदेश के सीएम के रूप स्थापित करने के लिए कुछ भी कर सकते हैं.
लालू यादव ने नीतीश कुमार को आगे करके उस स्थिति में पहुंचा दिया है कि जहां से अब नीतीश कुमार के लिए लौटना संभव नहीं है. दरअसल बीजेपी अब उन्हें भाव दे नहीं रही है. पार्टी ने क्लियर सिगनल दे दिया है कि फिर से एका संभव नहीं है. दूसरी ओर कांग्रेस लगातार मजबूत हो रही है इसके चलते इंडिया गठबंधन में वो खुद को जिस रोल में देख रहे थे वो मिलना अब उन्हें मुश्किल लग रहा है.इस तरह उनके सामने न आगे चलने की स्थित है न पीछे लौटने की. ऐसी स्थित में यथा स्थित बनाए रखना ही बेहतर होता है.नीतीश कुमार को शायद कुछ दिन अब इसी रास्ते चलना होगा.
क्या पीएम कैंडिडेट पर है नजर
दरअसल नीतीश को पता है कि अगर एनडीए की सीटें 2024 के चुनावों में बहुमत से कम होती हैं तो खेला जरूर होगा. ऐसी दशा में सबसे अधिक सीट वाली पार्टी की ओर पीएम बनने की मांग की जाएगी. नीतीश राजनीति के पुराने खिलाड़ी हैं. बिहार में जेडी यू की कम सीटें होने के बाद भी बीजेपी ने उन्हें सीएम बनाया था. उसी तरह आरजेडी के पास भी जेडीयू से अधिक सीटें हैं फिर भी नीतीश कुमार ही सीएम बने हुए हैं.नीतीश कुमार की यही कला उन्हें अपने समाकालीन नेताओं से ऊपर कर देती है. उन्होंने अपनी छवि ऐसी बना ली है कि सामने वाले की उन्हें आगे रखना मजबूरी हो जाती है.
नीतीश कुमार जानते हैं कि अगर कांग्रेस को सबसे अधिक सीटें मिलती हैं तो राहुल गांधी को पीएम बनाने की पार्टी की ओर डिमांड होगी. जिसे इंडिया गठबंधन के कई दल नहीं चाहेंगे. ऐसे लोगों में टीएमसी की ममता बनर्जी सबसे आगे रहेंगी. ऐसी दशा में नीतीश कुमार अपने आपको पीएम के लिए आगे कर देंगे. यह तय है कि नीतीश के लिए अन्य सभी दल तैयार हो जाएंगे. नीतीश की पार्टी ने इसके लिए बैटिंग भी शुरू कर दी है. अभी हाल ही में जेडीयू के 2 विधायकों ने नीतीश कुमार को पीएम कैंडिडेट घोषित करने की बात कही थी. इस बीच जेडी यू लीडर केसी त्यागी ने कहा, नीतीश कुमार, ममता बनर्जी और राहुल गांधी, शरद पवार सभी में पीएम बनने की सारी योग्यताएं हैं. पर अभी हमारे लिए पीएम पद या संयोजक का पद नहीं महत्वपूर्ण है. हमारे लिए अगला चुनाव महत्वपूर्ण है.नीतीश कुमार में पीएम और संयोजक बनने के सभी गुण मौजूद हैं.
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