रूस ने रविवार को घोषणा की कि उसका मून मिशन लूना-25 चांद के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग से पहले दुर्घटनाग्रस्त हो गया है. रूस की इस विफलता पर चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने अपने एक ओपिनियन लेख में कहा है कि रूस को सिर्फ इसलिए कम नहीं आंका जाना चाहिए कि उसका मून मिशन फेल हो गया. अखबार ने लिखा है कि अगर अमेरिका और पश्चिमी देश रूस के राष्ट्रीय हितों और उसके राष्ट्रीय गौरव के प्रति अपना सम्मान खो देते हैं तो उन्हें इसकी इतनी बड़ी कीमत चुकानी होगी जिसके बारे में उन्होंने कभी सोचा नहीं होगा.
रूस का लूना-25 पिछले 47 सालों में रूस का पहला मून मिशन था. यह 21 अगस्त को चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला था लेकिन उसके एक दिन पहले रविवार को रूस की सरकारी स्पेस एजेंसी रॉसकॉसमॉस ने कहा कि शनिवार दोपहर 14.57 बजे के आसपास लू-25 के साथ उसका संपर्क टूट गया.
एजेंसी ने अपने बयान में कहा, ‘ये स्पेसक्राफ्ट एक अपरिचित कक्षा में चला गया और चांद की सतह से टकराकर नाकाम हो गया है.’
ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है कि जिस दिन रूस ने लूना-25 के क्रैश होने की सूचना दी, उसी दिन रविवार को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान एजेंसी (ISRO) ने कहा कि उसका चंद्रयान चंद्रमा के करीब पहुंच गया है. उम्मीद है कि 23 अगस्त की शाम को यह चांद के दक्षिणी ध्रुव पर लैंड करेगा.
युद्ध के बीच रूस की सब कुछ सामान्य दिखाने की कोशिश
रूस के लूना-25 की क्रैश लैंडिंग पर ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है कि रूस ने इस मिशन के जरिए यूक्रेन के साथ अपने संघर्ष और नेटो के साथ अपने टकराव के बीच यह दिखाने की कोशिश की थी कि उसकी राष्ट्रीय प्रोद्योगिकी सही से काम कर रही है और उसकी क्षमताओं का विस्तार हो रहा है.
अखबार ने लिखा, ‘रूस के मून मिशन से उम्मीद थी कि वो अमेरिका, चीन और भारत के मून मिशन के साथ प्रतिस्पर्धा करेगा. हालांकि, इसकी विफलता से रूस की महत्वाकांक्षाओं को झटका लगने की आशंका है.’
ग्लोबल टाइम्स ने आगे लिखा कि सोवियत संघ (1991 से पहले का रूस) ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में शानदार उपलब्धियां हासिल की हैं जिसमें अंतरिक्ष में पहला कृत्रिम सैटेलाइट भेजना, पहला अंतरिक्ष यात्री भेजना और पहले अंतरिक्ष स्टेशन को बनाना शामिल है. हालांकि, सोवियत संघ के विघटन के बाद रूस के पास संसाधन काफी कम हो गए. पश्चिमी देशों ने रूस पर बड़े प्रतिबंध लगाए और कई युद्ध किए जिससे रूस कमजोर होता गया. इस कारण उसकी अंतरिक्ष क्षमता भी कम होती गई.
चीनी अखबार ने लिखा, ‘किसी भी महान देश की राष्ट्रीय शक्ति की नींव आर्थिक और तकनीकी ताकत है. रूस को सोवियत संघ से शक्तिशाली रक्षा शक्ति विरासत में मिली. हालांकि, इसकी अर्थव्यवस्था इतनी बड़ी नहीं है. 2022 में रूस सकल घरेलू उत्पाद में दुनिया में आठवें स्थान पर था. इससे पहले के सात सालों में रूस शीर्ष 10 अर्थव्यवस्थाओं से बाहर था. कमजोर आर्थिक शक्ति के कारण रूस की वैज्ञानिक और तकनीकी क्षमता को नुकसान होगा.’
कमजोर पड़ रहा रूस?
ग्लोबल टाइम्स ने अपने लेख में लिखा है कि अमेरिका और पश्चिमी देशों ने लगातार रूस को कमजोर किया है.
अखबार ने लिखा है, ‘कई लोगों का मानना है कि रूस की परमाणु शक्ति इतनी मजबूत है कि वह सख्ती से अमेरिका का मुकाबला कर सकता है. हालांकि, सच्चाई यह है कि रूस को अमेरिका की वजह से बहुत नुकसान उठाना पड़ा है. यूक्रेन के साथ युद्ध में अमेरिका और पश्चिमी देशों ने रूस के खिलाफ यूक्रेन को व्यापक सैन्य सहायता प्रदान की है और रूस पर बड़े प्रतिबंध लगाए हैं. रूस के पास यह शक्ति नहीं है कि वो पश्चिमी देशों को अपने खिलाफ काम करने से रोक सके. वो बस इतना कर पाया है कि अमेरिका और नेटो देशों ने यूक्रेन में सीधे सेना भेजने से इनकार कर दिया है.’
ग्लोबल टाइम्स ने लिखा कि हाल के वर्षों में रूस की कठिन यात्रा से देशों को सीख लेनी चाहिए.
चीनी अखबार ने अपने लेख के अंत में लिखा, ‘पश्चिमी देश रूस को सिर्फ इसलिए कम करके नहीं आंकें कि उसका मून मिशन असफल रहा है. एक कहावत है कि रूस कभी भी उतना मजबूत या कमजोर नहीं होता जितना कि उसके बारे में सोचा जाता है. रूस मजबूती से वापसी करता है और उसे कम नहीं आंका जाना चाहिए. अगर पश्चिमी देश रूस के राष्ट्रीय हितों और राष्ट्रीय गौरव के प्रति अपना उचित सम्मान खो देते हैं, तो उन्हें इसकी अप्रत्याशित रूप से भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है.’
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