Shailendra 100th Birth Anniversary: ‘आवारा हूं’, ‘रमैया वस्तावैया’, ‘मुड मुड के ना देख मुड मुड के’, ‘मेरा जूता है जापानी’, ‘आज फिर जीने की’ और ‘हर दिल जो प्यार करेगा’ सहित ना जाने कितने ही कालजयी गीत लिखने वाले कवि शैलेंद्र का आज जन्मदिवस है. पूरा देश उनकी 100वीं जयंती मना रहा है. 100 साल बाद भी शैलेंद्र आज भी लाखों-करोड़ों लोगों के दिल में अपने गीतों के माध्यम से राज करते हैं. हमारी पीढ़ी की ना जाने कितने ही लोग शैलेंद्र के गीतों को सुनते हुए, गुनगुनाते हुए बड़े हुए हैं.
तू जिन्दा है तू जिन्दगी की जीत पर यकीन कर
अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला जमीन पर
जीवन में नया जोश और ऊर्जा का संचार करने वाली इन पंक्तियों से कौन वाकिफ नहीं होगा! लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि ये पंक्तियां शैलेंद्र की हैं. श्री 420, गाइड, संगम, अनाड़ी, तीसरी कसम, मधुमती, चोरी-चोरी, आवारा, दिल अपना और प्रीत पराई तथा दिल एक मंदिर जैसी सुपर हिट फिल्मों में हिट गीत देने वाले शैलेंद्र की रचनाएं हमें हर कदम पर प्रेरणा देती हैं.
फिल्मी दुनिया के दिग्गज गीतकार शैलेंद्र की लेखनी का लोहा आज भी मानते हैं. मशहूर गीतकार जावेद अख्तर ने एक चर्चा के दौरान कहा था कि शैलेंद्र जीनियस थे.
Shailendra 100th Birth Anniversary: शैलेन्द्र के गीतों को साहित्य से दूर रखकर कोई अपराध तो नहीं किया?
शैलेंद्र के बारे में कहा जाता है कि वे चलते-फिरते यूं ही गीत लिख दिया करते थे. शैलेंद्र के बेटे दिनेश शंकर और बेटी आमला शंकर ने अपने कई इंटरव्यू के दौरान अपने पिता के दिलचस्प किस्सों को बयां किया है. दिनेश बताते हैं कि उनके पिता को श्रीकृष्ण की जन्मस्थली मथुरा से विशेष लगाव था. उनका मन मथुरा में बसता था. शैलेंद्र की डायरी में दर्ज एक किस्से का जिक्र करते हुए दिनेश शंकर ने किसी जगह बताया कि बाबा (शैलेंद्र) ने डायरी में मथुरा के एक कवि सम्मेलन का जिक्र किया हुआ है. इस कवि सम्मेलन के दौरान एक विदेशी युवक अपनी दो बेटियों के साथ उनके नजदीक आया और बेटियों ने कवि शैलेंद्र का ऑटोग्राफ लिया. बच्चियों को ऑटोग्राफ देकर बाबा को बहुत खुशी हुई और यह सुखद अहसास जीवनभर बना रहा.
चलते-फिलते रचे गए कालजयी गीत
दिनेश शंकर ने एक इंटरव्यू में एक और किस्सा सुनाते हुए कहा कि शैलेंद्र जी यूं ही चलते-फिरते गीत लिख दिया करते थे. एक बार का किस्सा है कि किसी ढाबे पर शंकर-जयकिशन और शैलेंद्र जी चाय पी रहे थे. वहां आंध्र प्रदेश का एक लड़का काम करता था. शंकर ने उस लड़के को आवाज लगाकर बुलाया- ओ रमैया-वस्तावैया. शैलेंद्र जी के मुंह से फौरन ही ये बोले निकल पड़े- मैंने दिल तुझको दिया. और आगे चलकर यह एक कालजयी गीत साबित हुआ- “रमैया-वस्तावैया, रमैया-वस्तावैया मैंने दिल तुझको दिया”.
एक और किस्सा कुछ इस प्रकार है कि बाबा ने (शैलेंद्र) ने नई कार खरीदी. अपने दोस्तों के साथ कार में सवार होकर बाबा घूमने-फिरने के लिए निकले. एक रेड लाइट पर कार रुकी. तभी कार के पास आकर एक लड़की खड़ी हो गई. कार में सवार सभी लोग कनखियों से उस लड़की को निहारने लगे. ग्रीन लाइट होने पर कार आगे बढ़ी. लेकिन शंकर उस लड़की को गर्दन घुमा कर देखे जा रहे थे. इस पर बाबा के मुंह से निकला- ‘मुड़-मुड़ के देख मुड़-मुड़ के’. आगे चलकर यह गीत फिल्म श्री 420 में इस्तेमाल हुआ और अपने समय का सुपर हिट गीत साबित हुआ. और ऐसे एक-दो नहीं बहुत से गीतों की कहानी है जिनका जन्म किसी से बातचीत करते हुए या किसी पर कमेंट्स करते हुए हुआ.
सबसे महंगे गीतकार मगर सिर्फ 500 रुपये पगार
30 अगस्त, 1923 को पंजाब के रावलपिंडी में (अब पाकिस्तान में) जन्मे शैलेंद्र एक लोकप्रिय कवि, गीतकार और फिल्म निर्माता थे. शैलेन्द्र 1947 के दौरान बॉम्बे के माटुंगा स्थित भारतीय रेलवे की वर्कशॉप में एक छोटी-सी नौकरी करते थे. नौकरी के साथ-साथ वे गीत भी लिखा करते और कवि सम्मेलनों और मुशायरों में शिरकत करने लगे थे. शैलेंद्र प्रोग्रेसिव राईटर्स एसोसिएशन और इप्टा से जुड़े थे.
एक बार एक मुशायरे में शैलेंद्र अपनी ‘जलता है पंजाब’ कविता सुना रहे थे. उस मुशायरे में शोमैन राज कपूर साहब भी मौजूद थे. राज कपूर को यह कविता बहुत पसंद आई और उन्होंने इसे अपनी फिल्म ‘आग’ के लिए बेचने के लिए शैलेंद्र के सामने प्रस्ताव रखा. लेकिन शैलेंद्र ने गीत बेचने से इंकार कर दिया.
कुछ समय बाद शैलेंद्र को पैसों की जरूरत पड़ी तो वे राज कपूर के पास आए. उन्होंने राज कपूर से 500 रुपये उधार लिए. काम पूरा होने के बाद जब वे उधार लिए पैसे लौटाने के लिए गए तो राजकपूर ने पैसे लेने से इंकार करते हुए इस एवज में ‘बरसात’ फिल्म के लिए दो गाने लिखने के लिए कहा.
अहमद फ़राज़ के मशहूर शेर- ‘रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ, आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ’
इसके बाद शैलेंद्र राजकूपर के साथ जुड़ गए और आरके स्टूडियो में नौकरी करने लगे. शैलेंद्र की बेटी अमला शंकर बताती हैं कि बरसात फिल्म के बाद राजकूपर जी और बाबा के दोस्ती शुरू हुई और यह ताउम्र तक चली. वह बताती हैं कि जब बाबा ने आरके स्टूडियो में नौकरी शुरू की तो उनकी पगार 500 रुपये महीना थी और आखिरी दम तक उनकी पगार 500 रुपये ही रही. जबकि वे अपने समय के सबसे महंगे गीतकार थे.
शैलेंद्र के गीत हों या फिर कोई कविता उनकी रचनाओं में जीवन का गहरा फलसफा हुआ करता था और वह भी ऐसा जिसे आम आदमी भी सीधे-सपाट तरीके से समझ सके-
सांस सांस का हिसाब ले रही है जिन्दगी
और बस दिलासे ही दे रही है जिन्दगी
रोटियों के ख़्वाब से चल रहा है काम
आज कल में ढल गया
दिन हुआ तमाम
तू भी सो जा सो गई
रंग भरी शाम
आज शैलेंद्र भले ही हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी रचनाएं इस धरती पर सदियों तक लोगों को प्रेरणा देती रहेंगी और हम उन्हें उन्हीं के शब्दों में याद करते रहेंगे-
आनेवाली पीढ़ियां
जब गर्व से दोहराएंगी कि हम इनसान हैं
तो उन्हें उँगलियों पर गिने जाने वाले
वे थोड़े से नाम याद आएंगे
जिनमें तुम्हारा नाम बोलते हुए अक्षरों में
लिखा हुआ है!
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Tags: Hindi Literature, Hindi Writer, Literature
FIRST PUBLISHED : August 30, 2023, 14:24 IST
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