देश में इस समय इंडिया बनाम भारत को लेकर विवाद अपने चरम पर है. जब से विपक्षी गठबंधन ने अपना नाम INDIA रखा है. एक अलग तरह का विवाद चर्चा में बना हुआ है. लेकिन G20 की मीटिंग को लेकर हाल ही में राष्ट्रपति भवन की ओर से एक निमंत्रण पत्र भेजा गया, जिसमें ‘President of India’ के स्थान पर ‘President of Bharat’ लिखा हुआ था. इसके बाद से यह बहस तेज हो गई कि सरकार अब इंडिया शभ्द का इस्तेमाल बंद करने पर विचार कर रही है.
ऐसे में भारतीय नौसेना भी वॉर्डरूम और ऑफिसर्स मेस (भोजनालय) में पारंपरिक भारतीय पोशाकों को मंजूरी देने के प्रस्ताव पर चर्चा कर रहा है. इसके बाद नौसेना में भारतीय पारंपरिक पोशाक पहने अधिकारियों या कर्मचारी को देखा जा सकेगा. दरअसल अभी तक नौसेना में पारंपरिक भारतीय पोशाक पहनने की मनाही रही है.
नौसेना से जुड़े सूत्रों ने इंडिया टुडे को बताया कि नौसेना के शीर्ष कमांडर पश्चिमी वेशभूषाओं के साथ पारंपरिक भारतीय पोशाकों को भी शामिल करने पर चर्चा कर सकते हैं.
त्योहारों में पहने सकेंगे भारतीय पारंपरिक पोशाक
सूत्रों का कहना है कि नौसेना औपनिवेशिक परंपराओं और प्रथाओं को हटाने के मकसद से भारतीय पारंपरिक पोशाक (कुर्ता) को मंजूरी देने पर चर्चा कर रहे हैं. नौसेना में वॉर्डरूम और ऑफिसर्स मेस मं जिन पोशाकों को पहना जाता है, उन सूची में पारंपरिक भारतीय पोशाक को भी शामिल करने पर विचार किया जा रहा है.
इन पारंपरिक भारतीय पोशाक को त्योहारों के समय ऑफिसर्स मेस में पहनने की मंजूरी दी जाएगी. यह चर्चा ऐसे समय में हो रही है, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल स्वतंत्रता दिवस के मौके पर अपने संबोधन में पांच प्रतिज्ञाएं ली थीं, जिनमें औपनिवेशिक परंपराओं को खत्म करना भी शामिल था.
कैसे शुरू हुआ विवाद?
राजधानी दिल्ली में नौ और दस सितंबर को G20 सम्मेलन होने जा रहा है. इस सम्मेलन को लेकर राष्ट्रपति भवन ने नौ सितंबर को G20 डिनर के लिए जो निमंत्रण पत्र भेजा है. उसमें ‘President of India’ के स्थान पर ‘President of Bharat’ लिखा हुआ था. कांग्रेस सांसद जयराम रमेश ने X (ट्वीट) करके इसकी जानकारी दी थी. कांग्रेस सांसद ने लिखा था कि, ‘तो ये खबर वाकई सच है… राष्ट्रपति भवन ने नौ सितंबर को G20 रात्रिभोज के लिए सामान्य ‘President of India’ के बजाय ‘भारत के राष्ट्रपति’ के नाम पर निमंत्रण भेजा है. इसकी पुष्टि करते हुए निमंत्रण पत्र की एक तस्वीर भी सामने आई है. यह निमंत्रण एक मंत्री के नाम पर आया है, जिस पर ‘भारत के राष्ट्रपति’ दर्ज है.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संघ चालक मोहन भागवत ने लोगों से ‘इंडिया’ की जगह भारत नाम का इस्तेमाल करने की अपील की है. यहां तक कयास लगाए जा रहे हैं कि मोदी सरकार 18 से 22 सितंबर के दौरान आयोजित होने वाले संसद के विशेष सत्र में भारतीय संविधान से ‘इंडिया’ शब्द हटाने से जुड़े बिल को पेश कर सकती है.
‘इंडिया’ शब्द हटाने के मांग क्यों?
भारतीय संविधान के अनुच्छेद-1 में भारत को लेकर दी गई जिस परिभाषा में ‘इंडिया, दैट इज भारत’ यानी ‘ इंडिया अर्थात भारत’ के जिन शब्दों का इस्तेमाल किया गया है, उसमें से सरकार ‘इंडिया’ शब्द को निकालकर सिर्फ ‘भारत’ शब्द को ही रहने देने पर विचार कर रही है. साल 2020 में भी इसी तरह की कवायद शुरू हुई थी. संविधान से ‘इंडिया’ शब्द हटाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दायर की गई थी. याचिकाकर्ता की ओर से दलील दी गई थी कि इंडिया शब्द गुलामी की निशानी है और इसीलिए उसकी जगह भारत या हिंदुस्तान का इस्तेमाल होना चाहिए. अंग्रेजी नाम का हटना भले ही प्रतीकात्मक होगा, लेकिन यह हमारी राष्ट्रीयता, खास तौर से भावी पीढ़ी में गर्व का बोध भरने वाला होगा. हालांकि तब कोर्ट ने ये कहकर याचिका खारिज कर दी थी कि हम ये नहीं कर सकते क्योंकि पहले ही संविधान में भारत नाम ही कहा गया है.
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