Film Review ‘FIR’: ओटीटी के आने से एक बात बहुत अच्छी हुई है कि दर्शकों को अब अंतरराष्ट्रीय स्तर का सिनेमा और वेब सीरीज देखने को मिल जाते हैं और कई बार वो इतने अच्छे से सोच कर लिखे और बनाये गए होते हैं कि दर्शकों की अपेक्षा से कहीं आगे निकल जाते हैं. इसका एक दुष्परिणाम भारतीय सिनेमा को झेलना पड़ता है. अगर भारत में बना कोई भी सिनेमा औसत है या उसकी पटकथा में गलतियां हैं या निर्देशक अभिनेताओं का सही इस्तेमाल नहीं कर पाता है तो तुरंत पकड़ में आ जाता है और दर्शक उसे नकारें भले ही न, लेकिन उसको तुरंत उसकी गलती का एहसास करा देते हैं.
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपना नाम बनाने के लिए जरूरी है कि या तो कोई खालिस भारतीय कहानी ली जाये या फिर किसी भी कहानी की पटकथा और निर्देशन का स्तर ऊंचा रखा जाए. ऐसी ही एक फिल्म हाल ही में अमेज़ॉन प्राइम वीडियो पर रिलीज़ की गयी- एफआईआर. इस फिल्म में कहानी का मूल आइडिया तो अच्छा है और भारतीयकरण करने का प्रयास भी किया गया है लेकिन इसमें स्पाय थ्रिलर वाला सरप्राइज डाल कर इसे बिलकुल ही कल्पना से परे बना दिया है.
जैसा की वर्तमान परिवेश है, हर मुस्लिम व्यक्ति को शक की निगाह से देखा जाता है. उन पर अलग-अलग किस्म के आरोप लगा कर उन्हें अपराधी बनाने के लिए तमाम हथकंडे अपनाये जाते हैं. भारत के निर्माण में जहां मुस्लिमों का योगदान है उसे नकार कर अब उन्हें सिर्फ आतंकवादी, देश का दुश्मन, गद्दार और न जाने क्या क्या उपाधियों से नवाज़ा जाता है. नवोदित लेखक और निर्देशक मनु आनंद की पहली फिल्म एफआईआर में कुछ नयापन लाने की कोशिश की गयी है जो काफी हद तक प्रभावित करती है. इस फिल्म में हीरो एक मुस्लिम है जिसके धर्म को और उसकी धर्म परायणता को लेकर अलग अलग जगह सवाल उठाये जाते रहे हैं.
एक विचित्र सी परिस्थिति में फंस कर ये युवक इरफ़ान (विष्णु विशाल) एक टेररिस्ट घोषित कर दिया जाता है और पुलिस इसे पकड़ कर, थर्ड डिग्री देते हुए पूछताछ करती नज़र आती है. अपनी बेगुनाही के बारे में कोई सबूत न दे पाने की वजह से इसे सख्त पहरे में रखा जाता है लेकिन अपनी मां से मिलने के लिए वो पुलिस के चंगुल से भाग जाता है. इस फरारी के दौरान उसकी मुलाक़ात एक मुस्लिम आतंकवादी से होती है और इरफ़ान उसके साथ मिल जाता है. इरफ़ान एक केमिकल इंजीनियर है और वो “सारिन” गैस बना कर हज़ारों लोगों को इस विषैली गैस से मार देना चाहता है. नेशनल इन्वेस्टीगेशन एजेंसी के प्रमुख (गौतम वासुदेव मेनन) को इस षड्यंत्र का पता चल जाता है और वो प्रधानमंत्री की सहमति से गैस बनाने की फैक्ट्री पर ड्रोन स्ट्राइक करवा कर उसे ख़त्म कर देते हैं. इरफ़ान की भी मौत हो जाती है. रहस्य पर से पर्दा उठता है लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती है.
कहानी मनु आनंद ने दिव्यांका आनंद शंकर और गौतम शंकर के साथ मिल कर लिखी है और इसीलिए कई कई जगहों पर गलतियां करने से बच गए हैं. सबसे महत्वपूर्ण बात कि किसी भी शख्स को उसके नाम, उसके कपड़ों या उसकी धार्मिक पहचान की वजह से शंका की निगाह से देखना कहां तक सही है. ये एक बड़ा सवाल है कि क्या हर मुस्लिम आतंकवादी ही होता है या हर आतंकवादी का मज़हब मुस्लिम होता ही है? फिल्म इस सवाल का जवाब खोज तो रही है लेकिन इसमें शाहरुख़ खान की फिल्म माय नाम इस खान वाले तत्व मौजूद नहीं हैं.
वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के हमले के बाद बनी की फिल्मों जैसी खूंखार, हिंसक और घिनौनी जातीय हिंसा भी इस फिल्म में नहीं है. इरफ़ान के मुस्लिम होने के दो या तीन ही सीन हैं और इस वजह से मुस्लमान और आतंकवाद का जो सम्बन्ध स्थापित करने की लेखक निर्देशक की योजना थी, वो अधूरी रह गयी. एक मुस्लिम हीरो को आतंकवादी करार देने के सीन्स भी कमज़ोर हैं, संभवतः एक्टर्स की वजह से. जेल में यंत्रणा के दृश्यों में भी अजीब सी कमी लगती है. मुस्लिम धर्म प्रचारक ज़ाकिर नाइक की तरह का किरदार भी रखा है जिस पर शुरू से शक होता है लेकिन अंत में उसका बेटा आतंकवादी कैसे बन जाता है, ये समझ नहीं आया.
विष्णु विशाल ने इरफान अहमद उर्फ़ फैज़ इब्राहिम रईस (एफ आय आर) की भूमिका अच्छे से निभाई है. अधिकांश हिंदी भाषी उन्हें बैडमिंटन प्लेयर ज्वाला गुट्टा के पति के तौर पर जानते हैं. विष्णु को मेथड एक्टिंग करने का शौक़ है और वो अपने हर रोल में शारीरिक तौर पर कुछ परिवर्तन करते रहे हैं. पहली फिल्म के लिए उन्होंने 3 महीनों तक कड़ी धूप में परिश्रम कर के अपने आप को काला कर लिया था. इस फिल्म के लिए उन्होंने अपने शरीर को बलशाली बनाया है. एक्शन दृश्यों में भी उनकी सहजता देखी जा सकती है. यूं तो फिल्म में कोई हीरोइन है नहीं लेकिन विष्णु की हैंडलर अर्चना कृष्णमूर्ति का किरदार रेबेका ने निभाया है.
रोल छोटा है, प्रभावी है और एक मार्मिक मोमेंट की वजह से विष्णु और उनके बीच के अबोले रिश्ते की झलक नज़र आ जाती है. वकील के रोल में मंजिमा मोहन और विष्णु की मां के किरदार में पार्वती ने भी ठीक ठाक काम कर लिया है. सभी के हिस्से एक या दो सीन ऐसे आये हैं जहां वो बिना बोले काफी कुछ कह जाती हैं. मंजिमा द्वारा कोर्ट के बाहर धरना देने का दृश्य हो या पार्वती द्वारा पुलिस के इलज़ाम के बदले व्यंग्यात्मक मुस्कराहट, अत्यंत सारगर्भित नज़र आते हैं. एनआयए के चीफ बने हैं गौतम वासुदेव मेनन जो संभवतः पहली बार किसी तरह की हड़बड़ी से दूर हैं. रोल कुछ खास नहीं था इसलिए उन्होंने कोई खास प्रयत्न किये हों ऐसा नज़र नहीं आता.
वैसे फिल्म एक अच्छी थ्रिलर है और आम दर्शकों को देखने में मज़ा भी आएगा लेकिन पटकथा में ज़बरदस्ती देश भक्ति डाल कर पता नहीं क्या करना था. जॉन अब्राहम की फिल्म रोमियो अकबर वॉल्टर यानि रॉ देखते हुए भी यही अनुभव हुआ था. देशभक्ति की ज़रुरत नहीं थी, मुस्लिम आतंकवाद की कहानी की ज़रुरत नहीं थी. एक कोवर्ट एजेंट को आतंकवाद के एक बड़े प्लान को ख़त्म करने के लिए बनायी गयी एक योजना की कहानी भी बना सकते थे. फिल्म निर्माता और निर्देशक अपनी कहानी में कई सारे आयाम डालने की कोशिश करते हैं और फिर असफल हो जाते हैं. ये फिल्म फरवरी में बॉक्स ऑफिस पर रिलीज़ की गयी थी और बहुत धीरे धीरे हिट हुई थी.
इसी तरह जब से ओटीटी पर आयी है, बहुत धीरे धीरे दर्शक इसे देख रहे हैं. हीरो का मुस्लिम होना कहानी की वजह तो है लेकिन कहानी में उसका दर्द सामने बहुत कम समय के लिए आता है. समाज का वो हिस्सा जो गरीब या प्रताड़ित है, या जाति की वजह से शक के दायरे में बना रहता है उसकी सच्चाई के लिए निर्देशक ने कुछ नहीं किया है. मुस्लिमों से थाने में पूछे जाने वाले कठिन सवाल फिल्म से गायब हैं. हीरो का अपना फ़्रस्ट्रेशन गायब है. हीरो की मां स्वयं पुलिसवाली हैं लेकिन उनका कुछ न कर पाना भी सतही तौर पर दिखाया गया है. इस तरह की कुछ वजहों से फिल्म का मूल आधार स्पाय थ्रिलर बनाना है या मुसलमान और आतंकवाद की समस्या पर सवाल उठाना है और कुछ और, ये कभी समझ नहीं आता.
अरुल विन्सेंट की सिनेमेटोग्राफी और अश्वथ का संगीत, दोनों ही साधारण हैं. इस फिल्म को देखा जा सकता है. इसमें रफ़्तार है, एक्टिंग भी ठीक है और एक्शन भी. कहानी की खामियों को नज़रअंदाज़ कर दीजिये तो एक कमर्शियल फिल्म की तरह देखने में फायदा होगा.
डिटेल्ड रेटिंग
कहानी | : | |
स्क्रिनप्ल | : | |
डायरेक्शन | : | |
संगीत | : |
.
Tags: Film review
FIRST PUBLISHED : March 20, 2022, 23:47 IST
hindi.news18.com
Source link