छोटे छोटे सब-प्लॉट्स की वजह से मूल कहानी की कमजोरियां दर्शक को उबा देती है. मर्जी पगड़ीवाला की सिनेमेटोग्राफी ज़रूर अच्छी है लेकिन उस से Undekhi 2 Review: कहानी पर कोई फर्क नहीं पड़ पाया है. सुधीर अचारी और सौरभ प्रभुदेसाई ने एडिटिंग में कोई कमाल नहीं किया है बल्कि इतने सारे सूत्रों और सब-प्लॉट्स को जोड़कर एक सूत्र में पिरोने में वो असफल रहे हैं. कुल जमा ये कहा जा सकता है कि अनदेखी का दूसरा सीजन फीका है, नहीं देखें तो कम से कम पहले सीजन की खुमारी बरकरार रहेगी.
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Undekhi 2 Review: सिमटे तो दिल-ए-आशिक, फैले तो जमाना है
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